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________________ चावसकते कही जे साक्षन्प्रथवा साधवाश्रावक अथवा श्रविकाजिमत्र्यावसक करते वो प्राकार करो अथवा सदत्ता विकाष्टादी कनें कहे जे ए च्याव सकाएते स्वापना व सक कहीं शतथाव्य आवसकनारा कदक यावजा सरीर तवा यसरी रातथावतित्ती लोइये। लो को तरऊ प्यावडी तथा लोकवा हा सामाहिक जुगमां पहरेदांत करे तंबोल वावरे इत्यादिक करेब। तेनेंद्रव्यात्रप कक होई) तथासमणगुणमुक्कजोगी|ब काय निरणुकं पायाश्वदामा गयाश्व निरंक साधा महाउपाय सुरप हपाउरणा| जिएगा प्रणा गामबंदचारी लोनव कालच्या वसयंउवटे तिनेंद्रव्याबस ककदा शत्रू इत्यादी बोलला कद्या बीएहमादित्र्यापणे तोलोकोत्तरता वावश्यक प्राराध्य ही सूत्र माहिन्यावश्यक करती तो स्वापना करवा कही नथ तथा शहाज सूत्र नाथए रना र पाकाशतथाखं धत्र्यादिदेशाला बोलनानी के पाक ह्या बाए कला प्रात्रप क परें नीषा कान ()जो ज्यो। एउ लथयो । १९९॥ तथा के तलाश्क इम कहे वैजे राजा दीक चांदवा गयाना सादाथाद्योमावाजिनले राय रायाते | तथामलीनाथ मोहन घरकी मते सुं तथा सुबुधि में हते फ़रसेोऽहेनुषां लीला गुंते स्यु। तथा संषपोषली ने अधिकारें। श्रावक ए कहा जम्पा ते संप्रतिथाच रात्र महोब वक स्थाते / इत्यादी घणा बोलक देबश तेहना प्रत्युत्तरमी बोश्री सूग मांगमध्ये ढारमेाध्मयनेकी रायाचा श्री वीतरागदेविंत्रण पक्कद्याती दांधमपि ते सर्ववरती कही शाने बाजी धर्मापि ते सर्वच्यार
SR No.650034
Book TitleUttaradhyayana Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages50
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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