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व्या-आयूष पूरोकरी अदीने ऊ अवतस्त्रासकार्ययिताइ सेना में दीरऊजी कालेति गनुराध्य लदिष्याला तिने उतराध्ययनना योगवितो चलि अध्यानकष्टे न्यावयातिदवें या बिलानवने यनप२ि५, बाज्ञानावरली कर्मउदै आयो तिदां बारवरसां बिलकरी असंख्य अध्ययनन यो तो रोनावच बाखरस नें आंतें । ज्ञग्नपरिस सहता केवलज्ञान ऊपन जिप्रति अज्ञानयरि सदसयौ तिमवाजसहित अज्ञान यरिसला एक वार श्री स्थूलन विहार करतांनाम निजईस्त्रीको जोसी कि गयो । तिखामानी स्त्रीये कसैविराजने अटेंगिया। ति श्री थूजन घरमा बानिया बेंझाने स्भूिमिगतनिनदेषी सामो हाथ करी कसैौ । इदो नमन है एवो की चाल्यो। एक वें केन लैश्क दिवस वादा लघु आयो। कर्मनि वसेकाइले नाट्यो। तिले स्त्री स्लजऽ घरे या व्यानोवृतांत करलो तिले राम लेवितव्योतोययोगी ज्ञांनी ( एहनो को अन्यथा न होया एवोचितवाविहाबली जो इंतो नानाप्रकारना रल सवर्णनस्।। कलसनीक त्यो व्यनेप्रमाणे ते मासु जक हैथूल नखांमी माराप्रसाद की सुखीथयो ।श्री थूल न ज्ञान परिसदन सबै तिम बाजे माहात्मानं न करवे।। इतिम ज्ञानपरिसरुजांव अत्र कथाकाः शांतिजिन स्त्रजन्नुः॥ श्री ॥॥॥॥ शनिदेवलोक श्रम को बाहर रूप रु अथवजयास उसाक्ष मनमनायेत ४४ । नचित्रण परेलो इहिवाचितव सिलवाचितिति इइसिरक नवितए ४४ प्रवेश आतिथंकर बेज्ञार्थ करणा आगेदिलनिश्धं विथंकरस्य । टषफटतेगा तार्थस्तु | एनुसासंकृत्यमनमेन थिए। अन्नू जिला अचिजिएगा (वाविजवि स्समुसत एक्माहरु। 5 इति रेक नविंत गंध।
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