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________________ ज्ञानादिक सर्वसहितले अगवन् जीयालीस्फं ज्ञानादिकसर्वसंपूर्ण उयारजै तेकहें बैं 74 सबंगुल सयन्नया एवं संते अनि किंजल यत्ति सब गुणसंपन्नाय श्री इथानिक पाम्पोथ को दकनीशरीरमा यामलदार नथाद्र । ४४ जीणादिकका वलीयागे आविदोन जीवा मुक्ति उपारने विकारित । अपुनरावृत्रिलयति |प्र स्ख्त्तीएल रामनन्तात्तेत ती माहि जेपरिसहजी राज्य करी जगजीव स्पंज पार MORSE पुरावत्रिएलीवेसरी र प्राय से एंडरकेनो लागी राग या तेजीवे किंड परीसर तिक है दीराय लें करी पुत्रादिकने दिलेले हरुककर्मबंधन मनोज्ञन्तादिकसिसकोमला वेंअहायासे मादिकनीच्णादिकनोला बात की कर्मनोविशेषकरो चतानानि दिवरसतीषादिकरूप यतिवी यरा गए या एलेने हा एक बहला लियत न्हा एकं बंधूला लिय व चिंदर | म एक लाम कन्लेस जिल दु दशदिकगंधसुगंधादि कतेने द्विषेवरा ||४|| | मकरी जगदन] जीव स्फे उपारजै। परहित परिक रोजी हा मेली लोन लेकर स्वार सफरिसर सर्व गंधे सुवेव विरद्य २४५ खेती एवं संते डावे किंडल यति किंचयी मुत्तीए रुष दोर मापतेद्ने अप्रा रोरादिकपिलनवचनका सरल प्रायानिक अलंक सरल जी नीड (एतले निघ्नतेस का नहीं ४७ कम्याशरातो संतेजाने अमिलोलारिसाएं प्रपचलिडोस (४७ अऊ वेया एवं सत्ते जीवे किं यति वा वारजे सरल लोबानामनमा हिदिकारर हिनमरल व लाना बास विकारामानिवारतो सजीव जावा संवादस किडा ति बेंरिदो करदो लेकरी रहित गोते संवादन करेायानो रलवलोते असं वा दननें या एका उद्य यय लावो ययं नाव अविसंकायलेऊण्यति विसंवाय संयन्नाया दिक निलेजिनियरहित वारजे मुझीएम कि अंतिम बोट:
SR No.650033
Book TitleLokashaha ki Hundi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages424
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript
File Size200 MB
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