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________________ १९० रामकुः कुप्राक्वनि कनो परणति त्रिप्रकार सचित-चित्त कु. कुप्राक्चनीक [सर्थ कि- ला- लोकोत्तरत्रामिश्रनोचाय मान जाए नोश्रायाम कोणत वडास तेर एएएवं कुणावराणिएतिहिानयात्राम कुय्यावया एग्स किंतंग्ला प्राप्त-पुत्र प्रमं परपोतं तेकह् स-सचिवचित मी. निरवस्तुना के सतेथकी-स- साचत नो का रई इसई सत्रुान्न लाभ इंनोवा कोणतं ते बोलायको भ तरिए गाएतिविहपंन्भवेतं जहा साचा चित्तेमीसएएसकिंत सचित्ता 2 सि. शिष्पना. शि. शिष्पणी [स-तेरास-सचित वस्तु स अर्थ की चेतना लाभ पात्रो भब. वस्तूने) नाभ नोसाम नोलाभ कारण अ सिस्माएं सिस्सी लिएंग्सतं सचित सकिंनं चितवबा पत्ता तंत्र एस. श्री अनि 'स-प्रथकिं मि-मीश्रवघुना लाभ सि- सीपी सः सभउते मीना भोजन मात्र भोजन स-तेरामीया तवस्तुना कारण सि.शिंग 'विशेष उ-उपगर णातरत्र। हर गादी मिश्रनो यथाभ कासहीत स. नेरा चितास किंतंनी मए मिस्साएं सिस्सियाएं सभश्माता वगरणाएंग्स तेम काभ १९८
SR No.650032
Book TitleAnuyogadwara Sutra
Original Sutra AuthorAryarakshit
Author
PublisherSujalpur
Publication Year1851
Total Pages412
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_anuyogdwar
File Size168 MB
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