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रामकुः कुप्राक्वनि कनो परणति त्रिप्रकार सचित-चित्त कु. कुप्राक्चनीक [सर्थ कि- ला- लोकोत्तरत्रामिश्रनोचाय मान जाए नोश्रायाम कोणत वडास तेर
एएएवं कुणावराणिएतिहिानयात्राम कुय्यावया एग्स किंतंग्ला प्राप्त-पुत्र प्रमं परपोतं तेकह् स-सचिवचित मी. निरवस्तुना के सतेथकी-स- साचत नो का रई इसई सत्रुान्न लाभ इंनोवा कोणतं ते बोलायको
भ
तरिए गाएतिविहपंन्भवेतं जहा साचा चित्तेमीसएएसकिंत सचित्ता 2 सि. शिष्पना. शि. शिष्पणी [स-तेरास-सचित वस्तु स अर्थ की चेतना लाभ पात्रो भब. वस्तूने)
नाभ
नोसाम
नोलाभ
कारण
अ
सिस्माएं सिस्सी लिएंग्सतं सचित सकिंनं चितवबा पत्ता तंत्र एस. श्री अनि 'स-प्रथकिं मि-मीश्रवघुना लाभ सि- सीपी सः सभउते मीना भोजन मात्र भोजन स-तेरामीया तवस्तुना कारण सि.शिंग 'विशेष उ-उपगर णातरत्र। हर गादी मिश्रनो यथाभ कासहीत स. नेरा चितास किंतंनी मए मिस्साएं सिस्सियाएं सभश्माता वगरणाएंग्स तेम
काभ
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