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________________ Jain Educatio ग्राहक मलनिकणिकाना परिमनोहरा कोमला 3३ सुकमार्क विश्वस्तालीगंता मि | उपरिपलासिक माहवीच अफ राइस 9 613३ गार-प्रकार को उपरिग्रहालयास व नावास या या सदस्वगादिना । [5] [को] [डायस दसेवामा राजा सत सदस् सुकुमाराएं दवाएं चाम सिवास सत्सदसाल वेता निमरका यतितिवादिचरा सादरकरक मियास वासविया किसा तर निगली रस्काया रिक्षा या गारहालय कवामाताररा ||पडिवाशदस मागास सिटिपर यारिया अशा सदाजता सदाता) मयाल कंड |गरश्या घड्यालक मासिया कि करार मोडावर कियाला चाल्ला इयम दिया [गामी स सरसंस्वचदणदहर दिशांपेच तिला अवधि यचंद कलसा चंदा घडे के याता (g वारादसलागा। साल्वासविल वह वाग्घा रि यमत्रदामकलावा पंचदशासरसरतिमुक्त. ५॥ जावयार कलिया। कालागु मपवर कुंड रुक रुकवमघमाघ तिरामा) सुगंध गंध। प्रियागधवन्दिया संघम विणा दिवस डियस इस एऐ दिया। संघरया तयाचा सल ||ष्ट्राद्य२या मित्राणि का शिकं कम बाया सप्तास सिरा या समरा इयसवाद्यायाया मायादेरि। मणिद्या तिवापडि माराणादवा यत्राशयामा पत्रा। नवागलाग
SR No.650030
Book TitlePannavana Sutra
Original Sutra AuthorShyamacharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages558
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_pragyapana
File Size250 MB
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