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"जिरणकारण अरहंत अठवा चक्रवर्ति बलदेव अघवा वासुदेव अघवा
धवा
ऊबई नए अस्पई
लरइवि
"न्यात र विषनाग तान एयं तस्मिं जनं अरहंता याच द्यावी वा बल दवा वा ! वामुदेवावा । तिज विशेषप्रसतिय मल्ल कलेज क कौर वादि श्रधवाश्रतवर्ण प्रातधमाधम गोला "ल्य ॐ बजियां न उधवा सर्वकानि धनऊ लते रुपये तो इघाप्पा राजकुलीन कऊलर इविषइतिहाश परमाअंतीसूकुलई रकुलर विवाहिन इइमा अब कुलर विषइ० कुलर विषई वधवा मनावस्वज्ञान कुलमुवापत ले सुवाच काल सुवादिरिद्द काल सुवो कि विग काल-तियांन शोर्य वंत मल्लकालक तकनऊ अवतरकावर ताला चरादि ब्राह्मण नाऊलरई विषइ नावइनउपज श्रविस्पइ उपजिस्पइन आया राज विशेष ऊरुव सज लरविष कराल र विषा घवा एनल कुले ॥ घवा हो वा निहा कोरवा
नागतट
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सुवातिरका अल मुवामाद कल सुनाई सुवा। श्रीयाई तिवा श्रायाया पूर्व आघवा इम निश्श्रत अथवा चक्रवअिघवा जलदिव अथवा वासुदव अध्व श्रादिनाघ कट इम एवं खलु रहंता वा चक्क] वहीं वा । बलादवा वा वासु दिवा वा । उग्ग
बालपण इघाप्पा
तेज ऊल तियां तिणिदास्ख रिगुरु पाइ "तिरंग इज जे मित्र पण घाणा अथवा श्री कमल स्वजनवसते इषा राजकुलीन माप्याते लोग कुल विद्धाने दनश्वसि राजन्या तळून श्वममिते त्रयकुलजा रखना. कत्ता वंश विद्यावा म्पत्रियक
नवं
सुवा एता गरल मुवा रायलेंस वाइ कागज एल सुवाखित्तिय विष अथवा यादव ऊलरइविष अधवा अरकु लिई नधाविधतेदवारी विसषधा मानानी पिता विष श्रधवा नलाय वेस कलंक रहित जाति न काल सवाद विंस काल सुवास्मित रसुवातिदपा गारमु । विसुधाइ
KOSOALANS
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सावध
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SANJA
Narasi