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________________ आमाका प्रा० प्रार रः सेवा दोषाल एम० निश्व० नि०साझा ति० ० साउ संपूर्ण त श्रावार नावतः साध्वीन राधार आवारा प्रहारमा हारेका ३४४॥ एवं खन्नु तस्सा निरकूरस वा २ सामगिं ।।।। ज० सं०सर्वार्थ स०सम्यक कार स० ज्ञानादिक इक स०स०]तान का सब्वरसंगकर सात यात्रासहितः चार नाइ३ि६ मकरवन ३१ सनइति इ इसविति सहितउः सिम धर्म स्वामि मंबूसा मि9 कह प्रदी जब मि जसव समिएस दिए। समाज एकासि।। शिबेमि श्रीभगवंत माहावीरदेव समावमश्रा वारांगनाद्वितायत स्वं धनमपिंडे या सापाबतिम अंक इक कुनः इतिश्रीता तवं धूप मावंडे अर्ध सप्तादितः॥ ए४॥ एवं प्राकारले वानी विकाइते कई सि。तेः ति०] साझ तिः साधवी: मध्य ननाघनु दे साना स्वदेसक ले स्पार इतिश्री मध्यमनस्य्वनोद्दिशकः समाप्तः॥5 ज०म० स्वन *से ते साधनं प्राहारं १०३ घातार्थः लाजा०जा पाइसक६३ बई चिंतुनायनासाजी दनादिकमादारनउपर ल 49583573 * सनिस्क्वाश जावयविधेसमा | सेऊं राजाका गाविंनं 22
SR No.650018
Book TitleAcharanga Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages594
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_acharang
File Size220 MB
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