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________________ २०१५ श्राराष्ट २४ | शब्दीिं | देवासे | दा दि एह-नर है। दा हि माह रसन्निवे मित्रसन दत्तस्म ||माण्डाए । को को ाजगोत्र तेहने | दे देशनंदा ब्राह्मीत नो | जाजालंधरगोत्र तेहनीक क्षे तेनी स्नायते नो नाम दादक्षिण मण्डलल दिसे ॐ पेपोते पुरससन्निवेस तदत्त नेविषे माहरण रसको माल स्सगो तस्सा देवा दाएमा दली ए जालंधरा यमस्सग | सी०सीदनी परें | | कुष्णाविक २ सन्नगरंतु श्रीत एस्टीम T हीमावंतामण महादी रते समे पन्या सारा सीज्ञक्र | तित्रिग्यांसहीत जताते ही कारणे श्री जगनाथ देवलो करते जाणे चीरे । तिएमा रोग या विछा। इसे ना मे विषे एक गितेसमऐन चहां थकी रविस्पो इम जांये बुवती कालथ की पहिली २०१२ दीनगनन्पी तिवारे जा चवतो २४ जो जे देवलोक को क्यो न जाए इस्सा मितिजा लई एमिलि जाए चय
SR No.650018
Book TitleAcharanga Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages594
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_acharang
File Size220 MB
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