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________________ वनमनदारणाशवत्त्रीविवं॥ तेदयमनयोगमनना व्यायारनाम्यतिवाव्यस्यवं सं जानता ॥ ते व्हिसाउने वचनन प्रयोग बुनना पारनतिशय कराया स्पर्व संलीनता से वरिय - उपक्वन रावणनिराधारांचा सेत्रमा जय किसली या शकिं तव योग पमिसेलीखाया २ श्र तदनव निरोध- बालनल वक्खून नजवदारणा वर्मा दिवस्तद वचनना योगना व्यापारमा व्यतिशय स्पर्ध संता के दात कायरता योग व्यापा रनयतिवादयस्व सलवयप निराधावा कसलय दारांचा सवय योग फिसलीया सकिंतं काय ओग नाव वि संजानता संवरिवर्व- डोहकारण की सुनला समाधिकारिया चव शर्मा का बबानी घर गोव्याबई सर्वमाचारी गोयांगना निकाय स्पर्ड मलान तर वाणिदानश्या मजेदा इंडियजियां। संवरान दरब Bar पफिसलीयाया २ समादियाणियादि काम्मा इवगु निंदिए सहमायय किसली पाच ह हिप काम योगना काय नाव्यापारध कार्यातिशयस्यवं जेके विवित्स खाय श्वयांम कर दिन निरवद्ययंणामा दया रामजनम हलफलमा उद्यानते जे फल संलीनता व रिववं= शिव्याजयाश्रय पाटपाटलाने नवसेवन ना लोग दिव= वनवामानवि जनादगार मोटा "हरुन sans 2001 सत्र काय जोग सिंली पयार सकिंचित्रसयला सरपचार ऊ आरामसु उपाए सु देवकुलते. जे देवता नर जननामह तिहार मानिताला जहां क्रियामा श्रीमनुपलसिलामा मकनपुंसकता प्रसादन विश्वनिवाना हो गोदावानामरान विलेया दारादाहार मिलनेदन इस दिन व्यायाताई विशेष र दितवश्पक्ष्मावशतिर दिवालसुता पर्वाणामिमुपणियसाला सुत्रीय मगसं सन्नविरहियाव विघ 3305
SR No.650017
Book TitleUvavai Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKesharvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages211
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_aupapatik
File Size100 MB
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