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या क्रोधादि कषाय
योगी मन यो
साकारावयुक्तानाका
नमस्कार मानदी १ स्त्रीविदादि ३ पति तानिंग नरकन्त्रायुर्बुधाबीतबंध काले ने पनि वातातपाधिक स्पविता यमः प्रतीत/वामि वृतीबंध कालाना जाविधकाल वापरता यः बध पर न विकाष नंतर चरम स्पर्ध एवं हम गर्ववित्रयत्रियत मानवरमत्यादि ॥ सेापादानाशक
घोपिक
मा यो ॥
त्रिया नारक स्त्रिय
विचमात्रा सुरमारि हुन कुमारा। क्रमले या दिव
वाचरमा
लगा। समा ससेज हा नर तिया एवं किपपद मतत्रियासंगा।। गा एवं श्रावकाश्य
मामी नारकसिय
कलपनार कस्प
aga/नवरकालाम सुविदत्ता रिलंगाला गया। दि प्रदविका प्रयासच विवत्ता रिलंगानaiक मागामिनर कष्ट या दिव नवति नचतत ॥ मनबंधबंधिस्त तासास सुत्रारिलं तिका तियागभितः सिध्यति तानाद मंगल नारक दंड वाससोत प्रकातिया काश्या सवपि दमत तिया लंगा र दियातं दियचः रिदिया । दिश्रायुर्वान भरतीया पिसञ्चचविपदमतियालंगा (नवरं त्रियातिणावादिय ॥ख्यातति+ना सूरकुमार गुलोगा| पंचिंदियतिरिकाजाणिया कष्टप रिको पढमत तियानंगा। संमा मित्रेत तिथ स्पंतिमा र मनुवा लोग संभा लिपिवा दिया। सुथनादिना सुपेशसु विपादसु भिति स्थानारक या युशा बंध विणलंगासामखचन्ता रिलूंगा मस्त दावा नवरं संमानय दिपना ।। श्रालिगि। दूध कालोमाली नावादितिबा दिया सुचना | दिनों सुवितिय विकाससंताच्या वाणमंत राजातिसियवे नास्त्री त्रायुः अव • इस्युक्तिः मागिया ऊदार ऊमा रिना मोगा येथेतरा ये च पया गिद्ध दासलातास ना करपानाचा दिन
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