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________________ ग्राहकाना हार का सायारयिका दीवानाका - किचक्र निवारितंमारयितुं च वाक्य चातून स्पर्श निघनार के स्पाधाला कवर्त्तिचातूचा हार कशरीर स्प- वमनुष्पाला व त्रिचनत कि याणां विषयचातूक घेंचा हार के शरीरं श्राश्रित्पनारक: स्पा तूत्रिकिय स्पा तेचः क्रियति त्राग्यात यावत् पूर्वशरीरं अके जीवनिवर्तित रिलामन परिणा नृपाजतिनाव प्र प्रताप "यमातन निर्वत क किरिया दिनेशनिया लोतरा लियस शारदिता किति किरिया गाति किरिया विशचन किरिया विषेश कि आदर- जैना रिया पिजा शवमा लिया। नवरंमस्त जहाज था। जीवालांतादन घियमरीशाता किति किरिया बस्न ि कीन नाव मिति किए। सियच । सिया किरिया ने शतिपणांस तावः चियसरी राज कति किरियामा थमा। मिया। वदिश्यान घृत घर मनुषतो विकिरिए। सियन (किशिए। एवंजावावमा लिए । नवरं माम्म जहाजी पवंड हा उरालि यसरी रग का म श्रीमान चत्रारिदंडगारणिया । तच विद्यमारण। चत्रारिदंडगाला गिया। नवरं पदम किशि रुपेयत आनी जयालमसंताचा एवं जदा [व] द्वियंता दागदार गं पितय गं पिंकंमग पिलाणि परिताप्यार्त वात लियानात कंमगसरी र दिता कर कि आदर कादातू दक उपजावई रिया मा ति किरिया (विध किरिया शासनात ६ काल राय गान गारथाः॥ क्रियावालगत ननिनि की मिलावित a वि सिलावता एसिलस्तोच तियायः वियन विद्यापरिवति॥ काल समलगरं महावीरदिगार/जाव रोजावपरिसा पडि नयाँ काकता रिदंडगा लाणिवा जीवावमा पताप ना इन की जो कहा गया का लि २ समागम दावीरस्तव दाव श्रातवासी घिरा लगवाता। जातिसंपन्ना क्र १८८ मीनार की जब ही इस पहिला पे खाक ३६ तोरई (र्च फलाए तब जोवनी 27-1 गत
SR No.650016
Book TitleBhagavati Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1539
Total Pages1168
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size575 MB
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