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________________ माण• ऊसितज्ञानं कसिन चूंचमिध्यानचं संचलितचा तू विनंगज्ञान विरुधा नंगा वखु विकल्पा यस्मिंस्त्र तू विनी तनुज्ञानं ॥ मायाविधः तस्यावयाच विग्रहः सकलाविशष निर राय का निः दशा ग्रह गए केसा संघाला वान त मायिक इति नावार्धः जागा द्यातनः प्रदीपन घटवेयं जनं तत्वमपक त्रियं वादिपरिणय जाननउब कर दि या व्यंजनीना दिपनि व्यालो अवग्रहो यजनावि ग्रहः । यत्राघविय यवद्यति• रहा जिनो नगवती (lam|तिदिप मतिना सुन्न | विनंगन्नास कितमतिना २३ बिहप आहाजावरणास तिग्रादशिदा ऐ। श्रायादय व जाग्रादय एवंज्ञादव यानि [बा दियना तादव नवरंग हियवागंनाई दियारा साहसुल च्चातूस सनम कितेान्ना सुनाऊं इमं । अन्नापि दि मिना चानूत्रधमे उपन्यास मालिंचा दिद्विपदिंदानं दिजाववन्ता रियावदा । सांगावं गासितं श्रवणास किंतंदिनं नवरे य मामाका वन विश्वास विपाडावसं निवसंसंविपादावसंग बाधिकज्ञाने शिष्ट नया राणादिसमुह भिवास से दिया वा सदर संगिय।। पari या करक संविधूल से विपदि एयाउ धारणायाम (स्वपदवशेष यदि यस भियन र संभिया किंनरसं भयं । किंड रिमभिमादाश सांगवसल हाईत्यादिनिचे संगिए समय दिगवान रणरणा संगा संविपापोनीथाएं सात किंनाही त्रागा ग्रहादीनां बधाना जीवानादिना ऊनानाश्याऽनाएयातिना श्रावण तियांना प्रवेश तिया एगमा एनातिया निणिवा दिया गया। सुयता १०४ कि ६ या निःचिज्ञानेनता निच धाया वः1)
SR No.650016
Book TitleBhagavati Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1539
Total Pages1168
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size575 MB
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