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________________ सज हा नामए जाल गठिया जिमाली वंगं दिया. चनुक्रमानंतर विचारीहरुभ मिली परंपरा ढिया जो तुगाहित्रिगदिया इसमाला माहिगाढा घा३३० यत्राएान्य प्र मन यत्रा एन्योन्यन शुरु धना तू गुरूकता विना नमन नारियतायान्यन गुरु के बन तू ते घास्पयो भारः स वि aamaaaaaaरकालपरवाच । ज्ञागलाग हित लाया गुलावासवंशात पवंशात लयच तदन्यन्न अन्नविय शांत व मातिरके तिलावत नारिक अन्योन aanaaja घडता ए. मे चना जिल्हा ब वता दिजन्मनाम नाम का गठिया मिया आदि दिया। अतरंग दिया परंपरा दिया। ग्रन्त्रमन्त्रगदिया -पघडा समुदायर anauna 10 अनमताशियत्राएं। श्रम नगुरु संतारियतान्नमनघडनादिति॥ जावाब सु वामदेवजीवावर या जातिसद बाथमदरसा इंग्रा प्रटिंग जाति महास. दि दियाई नादविद्वेति राम वियजीवंश समदाउपडि सावदय श्रविष यदि इदल वियाग्यं वापरल विद्याभ्यं a' समयं इदल विद्याथंप दिसावादश माइत्यादि. इहप तंसमर्थपरत विद्याभ्यंप डिसावादर्श जावास। कदामयं ज्ञात्। एवं। पातयन्नव दिया। ॐ जाल ग्रंधि का सं कलिकामा देवज्ञापन वियाग्येच जातप्रमादं । तं मिथा। एगा। एवमा तिरका मिजा एगमोरा स्पेत्यादि नमनघडाविति । एवमवगमग माझा स्वदिजातिसदास्त्र दि। वरु | एक कस्प जीवस्प न बनोब सदस्माई श्राविंगदियानावदिगि ऊन्यायुः सहस्त्राणि ती तो निवर्त्रमान नवं नानिन्यविकमन्यन विकन प्रति धमन्यांस व परस्परं प्रतिबधानिजवंति। नारक १८ विएग्रामगस्स. घाजी वनाचा उषाघा उ लावानिनि नजाति सहकालिक तक्काला पक्ष यास तीत 100
SR No.650016
Book TitleBhagavati Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1539
Total Pages1168
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size575 MB
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