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________________ समाये देवनापरम एनलश्याम (विमान देवता पण उपनाव हामी देवनी नक्कष्टी मध्यकशा ग्रैवेयक|| श्रीमसागरोपमा घानीस्ति श्री सईप निः देवतानई। वाम ॥ ||ॐ देवा ॐ उदरिमझिम दियस विद्यादेवि दाते सिणं देवास ३ सागरेनि देवाती वर्षसहस्त्रयाहारसिलाषञ्च केतलाइका सम्यक ॥ जीवजे हवीसई ३० सदन ग्रह जीईमा || स्वासोश्वासादि देवता कमार४ बोल नईची से करई ॥ छाउप हमासहिंद्रा एम तिवा ४ कादसीसा एवा ससह मे दिया हारोसंगतियास सिधिया जी वाडती सास कहता बूस्ि सर्व वनप्रेतक रिस्पे मोह इजा स्पे) इति श्रीसम समवाय संपूर्ण घय३॥ सरसीक हिवैयकत्री समज समवाय करे से) एक श्रीससि कीमत श्नाचादिगुणधमसम इन्धकीमांपना निशेधिकज्ञानचा गुणते सिा दिगुणक ह्यानक है वे ॥ लाइसधा २७ पकती संसि तिगुणा में न स्वीचा सिरी कय सर्वघापिगवेधक कहीं इ विनेदमाचरण ॥६) स्पइ ॥ दग्रहणेहिं सिशिरसं विकास घरकामं तं करिस्मति' पिम विज्ञानावर श्रवज्ञानावरण अवधिज्ञानाव मनपर्यवज्ञानावर की केवलज्ञानावरण एकय गय है। कथा रणकयना लक्ष्यध्य है। बोदियाणा वरणित नाणे हि नाणे मग पचवनाणे रवी केवल नागावर एम जुबिली बीजांच्या दी एयधिदं की एके वजदं सुरें जागे सेना व जागते निनिश इंद्रीयता चला चालता तेच यावरण कय गया बे|| वासुदेवन ही पहाव निय रवी राधरकुदं सरणावर हो सातावेद की मातादेदनीय == नोट कम ॥१५॥ कम् ||१६|| ४ हमीभा चरकुदंसणे हिदंसणे केवलद निहार पलाश ही गादी या गिडी ' खीरो सातावेद शास्वीयसाया x रवी X x हॉ० ४०xxनिघायला
SR No.650013
Book TitleSamavayanga Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHirsundar Muni
PublisherJaiselmer
Publication Year1699
Total Pages248
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_samvayang
File Size130 MB
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