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________________ सामाथ के तलाक एकधव्यापम स्विविचाऊ दाणमंत देव कष्ट ॥ कुल्पोप जघन्यतनयसह वर्षा स्वितिका काउ जोतिषी चंद्र विमा पटि विईप ओइलियाएं सौधर्मघम देवलेोकई जघन्य॥ एकपच्या परि देवनन एक एपहिले दासीदेवी उनकष्ट || एकपल्योयमा एकवर्षलाई अधिक स्वितिकही दाउदो एलिdai 'दासस्तं सहस हि विई में सोमप्येरेवाहनेप तिचा करूं ॥ सौधर्मदेवलोक ॥ देवन ॥ कतलाइकन एकसागरोपम स्वितिचा प्रशान बीजें देवलोक देवनी जघन्य ऊपन का ॥ विश्वविईएं सोप्पे पेक्षा या एम ईसाकप्पेवाडाहने आकाशनं एकपल्योपन स्वितिकी ॥ देवलोक इंदेवन के तलाकन एक सागरोपम स्वितिकही ॥ ईसानदेव लोक सातम बत्तर जे देवतासागर सारे एलिट देव श्यामसागर व पतिई में आवास सागर सागरकांत सनु मानुषश्वर लोकहित विमाने ॥ देवता ॥ रूपा ॥ तेह देवनी कष्टी एक सामरा एकमेव मोरदिए। विमा मंद रतिया एंको से
SR No.650013
Book TitleSamavayanga Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHirsundar Muni
PublisherJaiselmer
Publication Year1699
Total Pages248
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_samvayang
File Size130 MB
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