SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लाइक नारकीन ३२४ सागरो पमा पकाउ॥ सरकारकत लाइक देवता सोधम्मज्ञानदेवलोक १४ पल्पायम स्वितिचा नजं ॥। १४ पोप माषका ॥ केस लाएक देवतान) कषानी कही। लोन कर देवलोक २४ सागरोपमऋष्ट उप उर्वी हससाग' सुना उस पल सोहम्मी भाग सुच्द्द संग लिनुमा विई में नए कम्पेदे वाणांच महाकामदेवले के। देवतानजघन्पई चौद१४सा बचदेवलोक श्रीकांत ॥१॥ श्रीमतिक॥ श्री सोमनस ॥३॥ गरोपमस्तितिकही। जेदेवता ।। उस साहा के कप्पेदेवाएं इस सागरोवमानं विई में जे देवा' सिरिकंर्त सिरिमहिये सिरिसोमनसं लोका काविष्ट महें५६॥ महेंद्र को मोतराव श्राविमाने देवनापण उपनाबै ॥ ari देवता कष्टां चोदसा तंसकन्यह। देवता४५॥ गरायम् तयं का विहं महिंद महिंदा कर्त मतिर व डिसगं दिमाग देवता बन्ना तमिदेवा गांउ को से गांव६ ऊषः तेहदेवताचोदई । | काउ ॥ श्रईमासश्चोद परखव। सासो तेह देवतानई वादवर्षसह स्वासनेइ ॥ ग्राहारप्रसिलाब ऊपजइ ॥ ससा ग ते देवाचन सहि श्रहमा मेहिं ॥ एकेक व्यक जीव अश्वादश सवग्रहाई सकर।। रामतिवाट सिदेवासहिं दास सहस्से हिं आहार संते सीमिस्पर बूस्पि सर्वखनकरिस्माक दिवशपरमाणमिका जास्प |चौदा ॥१४संपूर्ण रजिषीय है।पनर से है परमार्षि घयन्।। इति।। कमरदेवविशेष महामा इयासव सिधिया जीवा जेनस हिंदिसि निस्संति का सरका एतं करिस्सति परसपरमाह
SR No.650013
Book TitleSamavayanga Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHirsundar Muni
PublisherJaiselmer
Publication Year1699
Total Pages248
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_samvayang
File Size130 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy