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पत्र संभल वि 'बु गापाली मन पोट का छा
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शिवगाएं प्राजविद्या शिंदरिद्रिद मूर्ति
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गर्ल को मनुष्पन प्रकार संस्थानक द्या ॥\
दाऊ काय वाचस्प याकारका
कला वाकातिया सेवालय नि
गर्लफ कांति संस्वानसं च) स्विति
संमूर्तिम मनुष्य ।
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विदितेदिचरचिचदिति रकम वा तदतिया वाया सचिन मा
जिपासुर कमार ममच रस खान में स्खितक ह्यातमवाणमंतर देवना। ज्योतिषीविण नई वैमानिकदेवतातिम होजक देवा ॥
संचित कही।
ॐमस स्वानऊ से (स्तकया॥\
वलीगामश्वन केवलसद बद
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संदिया" गवइतियाब हिदा संचाला जाए कुमार दादा मत जोइसिन्यविमाया कवि दलिय विविदेशिकतांत्रिकप्रकारे स्त्रीदेदश रुदेशक gas के स्त्री नगदंत कह रहे स्वरूप वैदक कब || नारकोमारुषवेदे किंवान गोतमनारकी न कहे गौतम! वेदवरुष
दान्॥
सकवेदाकये
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देशज चिवेद अरिस वेदे न समवेदनेरइया कशा ६ गोनो नो
असुरके मारनई कि स्परुष व स्त्री किंवा पुंसक वेदनास गर्दनमात्र वनपुंसक वेदना स्तमितकमा
आपले यि तौर रिमूमि प वाकवस्पतीय ६ डिय दिया दियतियैव
परिजिहील
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विदास गावदर किंग इमान जयति पवित्रा दावा बेतिचिलिम
रथ ॥