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________________ अष्ट विप्रं वर्धसद्य आहार निलायक छ । एकेक संसारमादिप्राणीह त्रि सवनम्रांतर ॥ सोगा हार लेबइ कोतिहिं वामसहस्त्राव्हारसमुछाडी विहिंसन गाहहिंस घास्पे यावर वाई बूकस्पक बिंध का स्प समस्त श्व न तक रिस्पाइ तित्रा जग संपूर्णश्य ॥ ३॥ हिव38] च्यारकषायक की इसा वाणकदे || रमेना ते कषायक ही क मि पश्यहर च सीफ स्पश्यता कोधकरी संसारन एममा लासमा नकसा कोधक घाटा ॥१॥ शिस्सं विराट पुड्डरका प्रतं कशिचितारिकसा थाना कदा काद कसा मारा युमान माय्याकषायमा सोनकषार्थ लो च्या ध्यानकक्ाध्यानं मनो न संयोग मनोरन वियोगा कराचारिवाद-वियोग काश याकपट ॥३॥ ताला॥४॥ अलावा ध्यान हिंसा मृषा धरण कभी विराधनादोइ निरोध नगीन विका खालावतधर्मध्यनगत उद्या लेबन मायेोगविरोध॥४॥ कसाम् मायाकसाए बोल कसा शिशाणा में जहा प्रशासा धमाकेदाशिवगड स्त्रीवाणीमा विषमखी विकार नातराध्यापन यारा की उनका या हारना वां बाजतना वित्रयाहारसा अव पावून विद्यामि ते सात विक घारा जानकर सातावेदनीय शयन ३२ संज्ञा २ मेनन तिला ते मे कनसंज्ञा दिनेश अधिक घास एक एक विद्यासनकर्म29जे परिग्रह नलिलाघते व रियह मंझा॥४॥ का॥ इमे सज्ञा ॥१॥ अपना "हा" प्रतिकहा 'नचरा कहा चारा पाहा श्राहारसनाथ जय मेऊण विप्रकारे बेधः। जीवन इक मानियो पसनांध बंधुक ही यह। तिहांकर्म नाम से दज्ञानावरणीय वेदांगुलइध्यारगाउन चनुरा कितने बोधवशा कर्मनी स्वितिरधि नाटके का लगवति उद्योजन एक कप ॥ साटिकर न हकार ईश्वर ॥ जापरेसन नादबंध ४. गए डीय ने कर्मप्रदे बंध
SR No.650013
Book TitleSamavayanga Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHirsundar Muni
PublisherJaiselmer
Publication Year1699
Total Pages248
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_samvayang
File Size130 MB
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