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________________ फलषा दिइ परिणामिमं नई तिमजीवन लोग लोग व्याऊंना, तेयरिणामिरुडानही हे मानतात जिम कोई कसं बलरहित मार्गि आत किया गफलाएं परामानसुंदरराम वंदना गांलागाएं। परिणामनि सुंदरा शाहाणं जाम देनाप्याक्षिका अंत जिमनीवडरखीधाई। कुधाई माईपी हिमातताततेादृष्टानिजे जीव धर्मण करीन तेजीव परलो कि आई रवी घाई। एकांतास हा बुहाना हिंपी डिनर एवं धम्काएं। लगातार डीहाई व्याधिरो गिद्वेषी मित्र कुंअरखी मानता किमको कमाई। मंबल महित नक्कयाने श्रीनिमुखी घाई । इमजालि ॥ २२ 20 (वादी रामहिपनि हेमानतात धर्म याद न । समाचरी नई सेवई दुष्टांतिज्ञानविजांतशक जामतं सपाहिको पवई। बतास सुदी दाई । बुहाना विवक्रि । र्मरहितवदनारहित सुखीघा २२ हेमात किमघरिश्रमि सुही हो।कम।॥ २२॥ इहागडे काम तिमरणदृष्टांत लोकजरामर रणबलत 'सारमूक २ । २ द्यायालाय नित्रं मिडराएमा पलितं मिनिस्गहस्ताय सारनंडाई नाशोशमा नई। श्रमेत्र्यायंारिस | नारीप्रज्ञादीत २४ देवमातापितामृगात्रतिर बोल दिवादीकापुरकर वर्भर्इ गुग्गना सहश्र साधु न या श्रातरस्माभि बालहिंणु मन्निव। स्थानीं तम्मापियां सामरा गुणगान सदस्याशंधारे धरियाईए २५ दिपुत्रगविश्वमाहिं सर्वन्त प्राणीन विष। शत्रु मित्रन समता शावक रितु न जावजीव दया पालवी रकर पहिले या तिरकु ॥ २५॥ | समयोस इस एम सच मित्र सुदारगाया गया ये दरई। जावजी दाई क्वशानि ॥ शराधयिका जागतासा लागिइं। बलन्नईघर मुखामी । नेत्तिकारणं घरमा हिसारीव मु RE
SR No.650012
Book TitleUttaradhyayana Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorJaysundar
PublisherSanchor
Publication Year1682
Total Pages230
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size124 MB
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