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________________ समुद्र से सजने नाम संख्या ना श्रथ व कोल धरना जैन लाना हा १८ हरीकेन क्षेत्ररणा २० चंद्रमुनिजेन ला २१ नाम २२ व०ट्री ० १ ० १ तदीयज्ञ समुद्रतीय समुद्र १ सय नूरमल दीपस मुरला समुद्र एप नाटके को कानुयेो यदेवे नागेजवे ययमन्नू मलेयता बुच्ची | से कि ते चबाएपुची / संयन ८०२५ | नृन्तद्वीप नूनसमुद्र जाबत जे सही १ | अयते पश्यामु ही से प्रथको सं०ते सन 1000 निशा का m ए० एके को वृधारता ० त्रिप्रक० a मा० मधे जय जाचही वे । सेनवळापुर्वी । सेकितं प्रागुपुबी २ एयाचे चलाइया मोहने गयाय होती त्यमाह माहिभ्यासकरी गुलिसे १२ जान पर ना लगे लि ए से काथाना कर्म माहितेमध्ये प्रथम १२ वीजी से नानुसीने न्याय चुक जे सेठि श्रेणि हने त्या यापार में था बैन ने करण नेमाने रुप वराजा पसलवरीप्रस Bi खिद्या एसटिएन० र दीप मु० २४ रुचकवर ही समुद्र हव लगतररिया ए रोचक दीपथावे तु त्वेकतला गास्पा टिकवल उत मनामत ने एक को नाम से पाता समूह से० माईलो कमी वा तेहेषा युवानुपुर्वी लालमन भाहरुलो से तंत्र पालवी उहलो ए । खितालुकु वितिविहा प० सं० पुच्चालु पु पश्चातुव a > अनानुपुर्वीच अथ कोलते समुद्ि मोक्ष इमान मननकुमा वी पालुवुश्री ॥श्रणाची से किंतं पुचा बुद्दी ।। सोहम्मे इस सारे मा महेद्र ब्रह्मलोक लोक सहसा श्रास अच्युतवैद्यक विमान हिंदे बनलोए लैश ए महामुके सहसाए । आा ऐसे पा ऐते । यार तो- चुए मचि हा विमा ले प्रथने सवनुभव अथ कीलतेव वा नुसती सपना मुक्ति जावत का तर विमाऐ इसाप सारा सेतेचा पुच्चीए) से किं तेच बालुवी ( ૧૧ अनुत्तम विमान इसी भाग मुक्तिस ला "सिला मेहिवक २५ इसिवारा जाय सो ३० नेपश्चानुपूर्वी सर्वभुरमल समुद्रद्दीव (
SR No.650011
Book TitleAnuyoga Dwar Sutra
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorShivchandra Porwal
PublisherRatlam
Publication Year1853
Total Pages200
LanguagePrakrit, Marugurjar
ClassificationManuscript & agam_anuyogdwar
File Size101 MB
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