SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मापक तांगाडा प्रहारथ की ऊपनाऽरक विशेषजीवन फरम्प | मरणप्राणत्यागलाले उपपात निवास व्यवन दे बताना राजा तिकरिव एाईगां एतावता ते सारी कर्मा जीवन वासिया चिरान चीन ॥ समंजस रोग पीकाव्यान२० कादिरोगन तथा रजन्मनाव था एतावतान ऊप जितिम करिव3 ॥ परिपाक सानावरणादिकर्म न विपाका लम्चीन र तेहन 53 दिवाली यन्त्र करिव वलीप्रांतीया ३ आचारंग "घर छासासंतिकार्यका का साया समंजसा || ३ |मराति सिंसप हाए | उबवायूं व वनचा परिपा नई संसारमा दिवैराग्य कृपाविया सालीयाके हवा सलीक है । सुते कर्म विपाक विकलत यद्यातप्पकन कहता सील कसाव का विवक दरब5 || ४ विकला नमसि० नरकादिगतिविष व्यवस्तीत ) सड़क हतां कवा लोगवीन पाने कशी तो मादिस्पर्शन र ति कलाश्रतमेव कहता हिजच गतिर लोग नरकमा दिएबाबप स्वागारिका काऊपनी रमा धार्मिकादिकनीकीधीवेदना इत्यादि रखोगव वार रुव पेदातंाददाता||||| संतियाणा | प्रांधांतम सिविया दिया | तामवसई सई प्रति उद्यानए फा बु० तीर्थ करते प्रचे द्योलाष्प वृत्तीजे | सं०बाणीया के श्वा वा सा पाल धि तथा उदकनै विद्ययाली रूप केंद्धि महोरगादिकतया येषीया कला एकपालमा दरबा श्रागतिक हास्यैते वीतराग कर्फ संपन्नवेंद्रियादिक तथा २०त्रिकादिर जीवाप्रद०जलवा रामाने रावली आकाशगामीयानइरिस लिया सना जाएगा। ९नले संनियाजाशिवा दित स्थास्त लजय सिके ईए कजलाथी प्रांतीयानमा रादिनिमित ग्रभवाम करी मज्जा लिया। केपी उस्फे ते कदम || कदव से पहिसावादति बुद्देदि । यूपावदितं । संति (या एग वा सगा (रसगा (उदाय ( उदयचरा (त्रागा सगुमिगो ( पाएगा पाए कि लोक चन्द रजात्मक विषइते घातप्रमाणि नरकाद्यतिविषेऽरकरूप महानयदेषि सन्जेलली अना दिसवाल्यास विशेष मानवमनुष्पकाम लोगनै विषयास ते रेणकवण की लो जिवाशील विवेक व नैक जाए वा कमवि कथकी भूलय कोई तिलिकालिकामात जेपाम केदकले व कमनेक वारिवधविनाशा जीवकर्म की अपना घर सुनाएल स्पञ्जका जैत्राणिधानादिकमेक एक वगबतिलक ती बलर हित निस्सार उमतादिगला पाम तिवा शिष्य कहबसव रश्मी व नघा डुरक कपजे एकर्मन महालया प्रमादपर करीब एक पारिक शरीर एक मूर्ख ॥ लिव इमली स्पासली उपदेसियक लिसंति (पासाला एमव्हज्ञयं | बडखाऽजे तावा | सत्ता का मेदिमा बा| बालरण | बदंगचं तिसरीरण | पतंगुर ४३
SR No.650010
Book TitleAcharanga Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorMayachand Matthen
PublisherVikramnagar
Publication Year1736
Total Pages146
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_acharang
File Size75 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy