SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्राचारंग ३ समलमा गिवरी कदाचिविशेषन पाम ने सोफिला जेट 3 तारखे) सो०र्थना देवाचा मानपोलीना निर्गम वली कि वो ०3० उपसा तर जिउन मलैयाको श्रम विशसदितसदाति श्री नाना प्रकार अलवर जीवन राषमता ॥ तमाचार्य बइ ॥ पाचार्य सर्वप्रकार या० लोक मांदिया महर्षि जे०ज्ञानक करीतिगुप्त रहवादेषिश्मश्रीगुरु इव्हसाब इमदेधितक आगमतेाई करीम शिष्यत कदम थावली याचा. थकाने साहसरीपास हिसरत प्रागमना जाणवथावजी कवा ए ममं सितो मे | उन संतर। सारस्क मागो चिवति | सो तदा मझतेि ॥ [सपास (सहतो गुत्ते | या साला र मदे सिला।।। जयप तत्वमाज तथा बली के हवा मम्म० एम जेर्वक दुकतेसम्म कालस्त० समाधिमरणकाल तेह नैका इंत्र सिलाम साकमो | वि० गुरुक है प्रर्थम विदेमेतिविस्वमतिम सद्या मध्यस्थ जो कमायमानुनियर जयंतिक हो उद्यमकर नाउदयय की वाइन जालाई स्पजालि बाई लिम वअधिकारपरिप्राप्तिविषमकदमकॐ तन किंवा न थी व संदेहास दिवच्या अधिकारक ही शिष्य मी व्याक मा० सहित आत्तिई ॥ लामा पारसोवरता) सम्म | मेटांतियास द | काल स्स | कं खाए | परिद्वयं । तिमि||वितिगत समाव समा०विन स्वस्वपनदनपामै सिया- एक सिया छत्र कुलत्रादिक बजे मि० वा सिरहितविधिकित्सार हिताचा एतावता संदेह इंजेन डोलते ककर्मतसम्पत्कमार्थ कहता आचार्यको सम्परूप आचार्य नाष्प तदतिकारी मा मामि ॥ जेकम गृहस्व किवा दर तथा वजे ॥ था जेावार्य नाम देशनानुसारिवलकार रही अथवायती तहसहित कोई एकसान क्ष कादितमानस तिहा संदेप्राते किम निर्वदनाऽपि पामजादे निर्वेद कपन गाम ॥ यतरह प्याराएं। रणाल लति। समादिं सियावोग गति सिया वेगवति । चमापदि । प्रण एफ निर्वि333 साथ जिसमनजे सलीमक कन्हलियन नाचनीनकट कानवेतिक है। सावंत ने सम• संधियसाधा व्यते हन अर्थ जाणतो निशिकार स्पयन इमनिन्दितावासमाधिकमाझ विषयादम करित सम्पकन्यादरतो ते विवित्सा उपनेता व उपदेसवोते है सीतसम्पादयतेविना अनैयेथिले द सन्पण्णा विज्ञान श्री नयनमन इस सत्यजिने प्रवेापदेश वर्तमान तामइया भयका श्रथवा अलावा कानमंलव कतमेवम. लिट इज सम्पति बोक मदद रसिज जिन वीतरागे श्वे द्याना नितेपरिणामनवास अथवा नन्पपल अथवा सर्वानाव ही सणाकरिव सम्पन दिवसानाविति विवित्मा श्रीपरमार्थनाना परिणामी विविदिषा || विरमा एकदेन गिजिति । ताम व साञ्जेनी सक। जजिदिप दियं । स हि स्म । समयान्त स्म | संप जयमाल नूर
SR No.650010
Book TitleAcharanga Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorMayachand Matthen
PublisherVikramnagar
Publication Year1736
Total Pages146
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_acharang
File Size75 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy