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________________ बा• तेाव्यक्त एकाकी ही तान इंस. वीमाउ एएक वयाप्रतिपन्ननाई अव्यक्त 150 अघमो दिल का बाधाऽरतिक्रमणीय जालना मी माघीपदवउदे व मादरउपदेशव सांकन इमम अन्न प्रतिमाननवसिप्रापण) महामोह लमोनीयनऊ का किपदी मां इसेकदैन । मोटरमनुष्य ॥ कार्याकार्यविधिक विकथाम सकी अपनी वली २२ ली। इतेते हातिमनपर्वतश्च जाती आदि यासिवान उपाय ककनी कन्यामि बाहीसमवेतशिष्पप्रतिक॥ -तमासी एकांत सायक ही सर्वसंग २5 कम्मा । जा पाती अप्पास थकीविरतिमुकि आपणीमति तलिते प्राचार्यमनिवे ज०जयलाइ ततेमुक्तिते विवान कार्य शस्तानवैजिनावतां विचरताथ दान करवान करिव गुरुकुलवासिव सिव। ताजी दिसा करिकता म वतन के वाले उप कार्यविषय लादिकक्रिया गतिको स्वापवु =तदिडीएकूदनां कब शितिणिनितरात्रा | एयातमा हाउ | एक्क मल स्स दे सणं । तद्दिहिए| तम्मो सीए | तप्परकार | तस्सली (तलव सूरण | जय मानल रस्कारते तरस्क 41 तथा चित्र प्राचार्यना १० गुरुकिदई उ ऊताई (प० गुरुनामवद्ध की कविनाच्यातना था। इसौनी लीव इर्यास मित्र पाल वली जन विशेष कदैन । सूत्री से० ते रदने विष अथवा तसे विशनप्रतिप्राय वरुन जावे किती कार्यबिना बाहिर बाहर रहैत था 4 पा०1 मई कहिमोक सिकुचारित्रिय सदा गुरुत्र्यदिवाकारी एव व्यापरिवर्तनके ली आहाराविषई इत्यादि अवग्रहमादिरस्ता पाउन समाजवता तेकहइन पनि पाउस से हस्तपादादिश्रवसंकोच नरविषदृष्टि विधज्मारोधकथा ॥ दाइवेदनवैयाक्वादि रविसपनपी || तष्टित हुन ॥ तथा॥ तो मज परविवरबु।। છીર तमालवा | उन्नत मायनार | मदताामा देण मुझति । संबादा बदवेस हो। मागमने प्रसारसाग ए० एजे श्वक्तिक फुं तेजस कहती श्री ० बोलीन मुक्तिसर्व संगवित्रतेौकरीसदायक व ममता श्रीमानस्वामास्वामी दर्शनप्रायजा लिवा ताल● ते प्राचार्य श्री संज्ञा ज्ञान ते पाइल मिकल ॥ एनल एक वारीनघादोष आचार्यसमी तीन युवते मारते ही है। बिहारी चित्त्रनिवाईशपथ निझाई पलि पासियपाणिगाना | समतिक्कम मायेणे | १ किम्ममा एप प्रेमास्तादिविलि० समस्त सुसव्यापार संप०सम्पक प्रकारेस्तपादादि श्वक्ति क्रियाकरतांना कदा चित्रवस्पलादीप विपसारत ॥ थकी निर्वर्तत ॥ अवयवांना वामरजोद रुइतेक है। एग. एकदाकदा विद्युणूस हिता प्रमप दिलवासे वा लताने हने कायम. काय सरीरमाया एका इसका मित्र का प्राणीया से पातिमा कर्मबंधनी विचित्रता किम शाकादिकन इकायनइम्पी प्राणत्यागऊपन इंक बंधनधीक पायातावाला मान इजघन्य स्तितिकर्म का लेझीम स्वाम संकाच माणे १ सारे माणे विण्यिहमाणे (संपलिमद्यमाऐ। एगया । गुणसम्मियस्स । रयते । काय संघका सं
SR No.650010
Book TitleAcharanga Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorMayachand Matthen
PublisherVikramnagar
Publication Year1736
Total Pages146
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_acharang
File Size75 MB
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