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________________ याचारंग ३० ज्ञानी केवली जमकर तिमश्क चदरादिक युग बोले पतले त केवल लोटां० कृ० लोक विषासम० पुषेमी मात्र. दिनादिकते केवल एक परिबोलवे ने रायगति से जम उनकी एका २५वरुवा दवद । एत फक इथाद्वावदेषो या केतकी जानका० के हको०रागियार दूनि थापामादिविवादक २३ एकदर्शनीश्मक/२५ वनाजानकी वली पदार्थ जानकीममिक मनुष्यलोकन विष॥ जेतला को रिक॥ इतिवदंति वा विमाशी साणीवयति विद्याग) ग्रावंती के प्रावंती लोयसिस मारणाय मादाय पुढेो कठैमा प्रतिक्रियान || मेदि० यागलिक होति दिदी है। दिनमा शानिकरीत्रा विहविशेषकर उदिते तिरि०14 तिरबीदीमा बसेका सुपरि०क० रूमी परिया जोच्यते स्प उत्पादिधर्मको विरुवद नोच्या अथवा अम्मारती में कर दी जाती की सर्वप्रयमनुमानमाचार्थ इत्यादिप्रकार5॥ इत्र कर दिया गुरुमी संन्य ज्या मधे कांदा उरई रिविशेषि‍जा एप। ॥ । वाजिनमा कवि तथा मित परीतमकद॥ उकहत ० कथवातिमज्ञानी केवल धारीदीक बोल्या जातीपुरा बोलइएइज दवनगतप्रत्यागतसूत्र कह55॥ विवादवदंति॥सदिनं वर सर्वशण सर्वदत॥ | सर्वजीव सुयंचरण | मयंचाए। विसायं चारा उहे लिवादं रुक शादि स्था० कृ० तेव्हन परि०प्रतापताक कसा हवा लियोग देापगड रिवी ॥ परिषदिकरिवा देतिरियं दिसास सहतो ( सुप्पडिलिदियंचरण किलामा उपजाच परि० कार्यविषया तथा उपामा ९० क० धर्म वी॥ पारीवा ॥ एथ की कविवा तानइविषई माया उ सज्ञेयाणा | सद्वेश्या सहेजी वा सधे सन्त्रा दंत हा प्रजावतज्ञा | परियावेयचा कि लामेय वा परिघेतचा उद्दन्द्वे यच्चा एवं पिजा दनुवचनतिनार्य प्रतिग्रार्यमा होम्देऽदी अ॥ इष्टसंस ल्यउ ॥ दुष्टमान्य नचि० क० इदो दो पनीर हवाचन केई पी भाकम देवाना जमदार तथा निराल गादिकमकद‍ जिधर्मन विजातीयानइदलिब देोषन थी पापानुबंधू नाका रथ की पारि०क० क्रूर कर्मनाकरण हारते नश्चादा सणारियवय एमियं । तब जेतेच्या यरिया तएवं क्यासी सिऽद्दि。चले | ऽस्यंचले | डुम्मयं वसे || ३0 जा
SR No.650010
Book TitleAcharanga Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorMayachand Matthen
PublisherVikramnagar
Publication Year1736
Total Pages146
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_acharang
File Size75 MB
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