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________________ दिक तथा सेयमिव लेहनामनादिपुराणसस्त्र । पृथिवीन अशा स्त्र समारं सता अनेक रथवीच्चाश्रित दक वनस्पती प्रभु नाजी व विणास | सिद्धीथ्वी कायन इजक दवा तेएकरी 2थिवी का विष कर्मन इस यतो सरूप कसे। दिविवेद नारंगध की नियम होते दमइफमस्वरूप श्रीक्षीत रागना इसमास रख लुइस मारनकरण करावनुमतिकरी वाक्या का रिलायंस श्री वर्धमान स्वामी ॥ सहिदsa विदि। साना पृष्ठविकम्मसम्मारेले | पुढविस समारं समाएगा। रोग व पाऐविहिंसइ । तञ्चख तुला (परिज्ञा प्रवेदी परिज्ञाऽमजा णि धत्याख्यान परिज्ञाय चरिखको पदवी / प्रसंसान दे | अन्फज्ञान) प्रणामसेवादि याजन्ममरण कविवर्य | मोगी ताकि शादी के थिवी नारानका ज्ञाश्वेदी दिवषाधी लोक जे कार तिरु करणादि अर्थथम इममा पृथ्वीका यनेपाली उपनेते ना तिघातविमि रणब इमजीवी समारसकर इते कामदेषा क दाइ ॥ की मनमोकी लुट स् कि कार विक (इबाइ जीवतव्यन ऊना कथा स्प गव्या परिणाय वेश्या | मस्साचव जिविया परिवंद माण या जाईमरण मोयेणार सरकपरिघा याद स्व० स्वयमेव प्राणपथवी कायमै | घाव अनेश पासे फुटवीसस मालकरराव ॥ यसमा स॥ करतांनुमोदन ही नुमा दाव नही॥ मस्त्रम मालकर 5॥ पृथ्वी का शुभ समार सते रुनेच्या गमि का मिसयमेव वुड विसचं समा रंसन्नहिंवा सुट विस समारं सावे । अन्नदिवा पुढविसचं समारं लेतेस मणु जागा तसे लिहितो धान दिवेजेश्री सग निशि स्फे करीने सम्पदर्शना । ते कुमपानी खजु तथागारसा समीप संसप्याप इणि थाई शिक्षज्ञानदर्शनष्पितनलीसम्पक जाति दिकनीशा बीस्फाइ "निश्चै सगवंत सभी वि एतावता श्रीवासमा सम्र्पकारपो मनुष्य न मारारा हियाए। तसिबोदिए मेते संबुशमाणे 1 सरागन श्वचनि मजा णि बैौजेच्या शतेनर्थदेउ तिने या एीय समुहाए। सोचाखनुगवण गावातीए इद जाइते हम इतनमान का रानपरमार्थजाणिवा ॐ प्रम नीली
SR No.650010
Book TitleAcharanga Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorMayachand Matthen
PublisherVikramnagar
Publication Year1736
Total Pages146
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_acharang
File Size75 MB
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