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________________ जण कारण घटवी फिरो साधकस जावई श्राधादिभिघ की ॐ ॥ 张 वथवा निरीदिसिविदिसथ को ऊंचा । वियदमुं व्यर्थ या बली बली उपर लीप्पो दश व्याहवे। एकेन विशिष्ट ज्ञानऊपजते कस ॥ दिसावा माउ दिसाचा प्रामं सि । जायरीन वा दिसा | रमादान्मानवांत रियुंक्रमणक जेतेष्यामादग्रात्मात्र प्रथवा विदिसिका यातागतिकरे ए बइ जीव मुकी एक दिशिक की द स्म रई ॥ दृष्टांत पूर्वप्रकारे कदेश मंसि । एवमेगे सिस्मात्तं । एतावतजी दिसलीविदिस यक जियायै ध कर्ज ॥ इणिसंसारमादि परित्रम करेजीव वेति माया अथवाइए। जोइमा उदिसा | अणु दिसा उवा| फसंचर | साउदि साउ | साफ दिसा जीवन ज्ञानि ते ऊंण्डवे। जेश्वी दिव्य दिसभी स्कादि जेा वादीत लोष | आत्मवादी लोकवाद मवादी लोकवादी ( श्रीमत/ तथा कावा करता मोथा वर्तम कदै जाहे ॥ लाव दिस मरणात्मा जीवनका यह तेज्ञानावरणयादिकर्म कर्म का मजेने परिसम्म खसाखसककरावीत काम वादीने मि विवात्मानो जाए। वादी पतले एकोननवादी एम ले एकदम अकर्मक रिस्क कसो वावादी सोप्पमतीतिरात्रिकाले आत्माक कवि मोदनवा | सोबास यावादी ॥ ॥ला गावादी कम्मावादी किरियावादी करिस्मे वह कारा विस्सं चदा करजया आकार डन्ड धर्मविधवा । एतनामाना स्त्रिता बकस / दिवइदन विशेष जापान प्रदेषा ज्ञपरिज्ञाकरी न दे जाणिवायू त्याख्यान परिस लागोसवा पूर्वपतला सर्व कर्मन समाइजेसन जान फलदेषा ब नाती क्रियाविशेष वादित निजी 3 फा परि ज्ञानक मनिया दिकपाल कर्म ज्ञेयरिता जा सपसेलली धर्मस फल त्यसयतावस विसमफान्न सविस्सामि॥ बः॥ यावति सावंतला गं सिकम्म सम्मारं सायरिजापियच्चासति । परिणाशिवा जातीमा उनी प्रत्याख्यान परिज्ञाइख्य । एशर्वाक्कयत लावतद्विनिविदि। सर्वमिविदिप्रापणा की या कर्मम दिन नर गतिमा विदा बतां नानाप्रकार स्पर्श ताप जना मरणा क सन या तिवा उनर एव उका गतागतिकर5 सदस 'लिंद रूपा नामका राजा दिए लेकिया की रणजी रोक लो कि * एक दिसा बास बर साउ दिसा उसका उसका दिमागमा दिने वि जिनसे विमेन च गतिक से सारा द के नायिकाम्म) खयं परिसे। जोइ माउ दिसा सादति । रोग वा जोणी साध विरुवा फासेर मिसदे विबकरमा दोरे जावजीवनाहि इम दी साथ सिक्षाव्य पूर्व धर्म वितेनुवचन में लीन पो करता जातिस्मा म्हारे उप निमज्जन्मा तरनेश विष ज्या पानी दे वानपथक लोक सोगथी इन्ही मते विज्ञपट मतियागमन स्वमन्य जातिस्म रहे। जाएं। प्रत्येक भवन । इमं निराई वीर श्रेयास तमावस्या प्रथवीवादिक्रिया महिला यायवार्त्तिकरूपमकरीम
SR No.650010
Book TitleAcharanga Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorMayachand Matthen
PublisherVikramnagar
Publication Year1736
Total Pages146
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_acharang
File Size75 MB
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