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० यिशालादार विदा एकदाश्री अथवा पजिया० लोट्कारादिक ब्रिदांज्यारिस्ते सरोपी उपरिपलाल महावीर उदासथ्य ॥ कनकरी में कई ते हाच विस्वामी एकदावस्पा ।। २॥
करागमनथापलाल असु ॥ कहती
सुशियसालासुर गदा वासा | वायलिया
न. नगरविषेक श्रीलं सु० स्मसान विषैवस्पा०ध | रू० कंपने मूल नैविषेश्री राग तेहि 'रसूनानैविषेवस्याला वेतनावास इ
गत नौ वास ॥
आगे सेमिमामा लोक चावी जिदार है। तिमांगेता रक. दीयते ग्राम मो दिनगर बादि २९ देवा मइ तिहो अथवा आराममोदिजेागा रघेरते मारा मगारति हो ।
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| लाल डोजसु एगयावासे ॥ २॥
तारारामागारे (तद सर्वेकिनसूतिकही ते विषेषु निकट्तो जगत्रयन जो ३ ३६ अथवा वर्षाकाल श्रमपविषे सावन के लाकाल स्वर्ग तक है । एतेरस वा से प्रकर्ष ते
नयरे वगयावासा | सुसासुलगा रखा । रुरकालविद्यायावासा ॥३॥ यतदिंमुणीसयादिं । समरणञ्चा सिपात रवर्षरत ने बार वर्ष झरी तिरमा केस एक शेषरूती। सोलगी रातपत्रमा निर्देपियरे प्रमादे रहित स्वामी माघीनकरे लगवंतन बारवरस मोर्हिए स्वारात्रि दिवस तपमानयमानुष्टानविषयकरतकारजेतदशस्व प्रांतरगत लोकल स्वस्तानी बेदिलीरा त्रिनिदास दादिप्रमादिरहिता तथा समाधि समाधिवंत शुक्त प्रमादतेरालीनिन कीधी कदा चिनिया ने नलेऊनीयात्मानेजगा वनिमाया दिनुष्टान विषय वि
ध्यानध्यायं ॥ n
रसवास | राई दियंपि जयमाप मात्र समादियज्ञाति॥४॥ णिहंपि रणाय गामा) सलग उठाए । जग्गाव नामसानि विनाशदान करते प्रतिशतमा जागता इसवी सवेप्रमाद से मारवा बोका र । इम जालीवली मन्त्र बब तिरुवी प्रतिज्ञा न करे विप्रतिज्ञाकरैन वथा ध्यानध्यो शिदाबरता कदाविनिशप्रमादथा इति उ तिमी कती एकदा शीतकालादि ही इम जागी निासलीन ॥ ५॥ विषर रात्रिबाहिरी सूर्त मात्र निप्रमाद रात्रिटालिया सध्या निबैधा ॥ तीथापा | ईसिसाईयासी चाय मिल ॥५॥ संबुकमा || पुरविन | सुलग वंजाए |पिरकम्मयाच्या राज