SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्राचारंग ६६ वितै देवसप्प के तलो कालगत स० तेन देव वस्त्र सगवं तस स्थितिकल्प सर्वती किश्न तेली त्यागी ते वस्त्र वो सिरीचनगार समवंत श्री महावी म तइकवर्षमा सकिएतल को बैतिवार पबेस्वामिचस्त्र मोत्या स्त्रावेल च्याम्बली लगदे 72 3 विहारस्वरूपक है ॥ लित ज्योनही. गकपड सुचारु सिया तनसिं ||३|| सेवञ्चरं सा धियंमासे | जंगम शिक्का सितलताताचाई। तावा सिवचम थपो० रुपमा एति पोर बी एन लेस्पारोमा तिवाल तो तावतानि ५० हिवसे प्रस्ताविसर्गतश्यसमिति वा लतादीति नादर्शन इज थक मति समेत जान होते हज मानजे ईयीसम लिइ जाइयो तैयारी करुनी तिरि०गाला बोलावा बालक सहता कहता। घणा एकता मिल्या ते बालक लिई विस नान अमीपुर सीकरी या गजिविस्तीशी कप पर 5 यी सोध । यषु सजी मिकाते सरी सगवंत नलीन कास्पा कोलाहलकाबली एकदा विषेषुदेईनऽपत लेनिनदृष्टरुषप्रमाणभूमिजोवनात सोश• चिनमा दिसा श्री सगवंत विहरता ॥ ५॥ विधानमाश्वाले। पारिसिंतिरिय निति दषु मासांत से शाति | अश्वरकुती तास दिया । ते देता देता बन्दाव कं दिसु ।। सय्० किला हीक्स तिने विषैश्यात केवते। विति किसानसेवा वसती रहता नावश्मैक नसेवनदी दर्शता स्त्रीरुषमिव प्रस्ताव तेल गवत श्रीमहावीररतात इणिकारिश्रीगत स्वयं बुद्द आप पेज आप ए ई वैराग्यमा दो काम स्वामी देवी पदवी खोइ काम सेवा उश्प्रिदेशी धर्म सी प्रार्थयतिस्त्रीननरक हरदीव मुक्तिमार्गीलापन उम्र ॥ जैकेयाराक गृहस्व तेदितः ॥ पुरुषमृगने वाला वापरला जाणाख्यानपर सटाणादिवितिभिस्सदि । इत्री तास परिन्नाय | सागारियासावति स सयंपावसियाका ति ॥६॥जकेशीमगा तद्यपि सु० ०श्री सर्व नौ स्वरुप कांगलिक स्पेते एकने एक्लै अनेरास• सो हिलोनही। बीज इनानिचा लीनसंकीय इल गवत इसकी बोलाव ताइसा बोल नही। श्रभवाजे गृहस्तादिबस वाइन हरु अं तेदसदूत मिश्रलापता बताते दूस तथा गृहस्ते किया दीपक कारवाया स्वामी बाल्यान । हिते अनेक प्रकार मिल देउत खोमी आपणाकार्यविष‍जे दम तथा तेन वचन मनोमानि नईतेसमवेत धर्मध्यानध्यावज्ञ ॥ नही स्वामी के वाबजूक हर्ता सरल मायारहितासमा धर्म नापास कजी एकी वा ॥ ॥७॥ रचा मी सी लावंपदायास फाति | विपा लिलासिंख | गच्छेति पायं वसती ॥ ७ ला सुकरामाग सिं| सालिला से लि ६६
SR No.650010
Book TitleAcharanga Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorMayachand Matthen
PublisherVikramnagar
Publication Year1736
Total Pages146
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_acharang
File Size75 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy