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________________ तितिर यामरजम | इमक रसांप्रादारविना वारित्रिय आहारदार नोकरश माबोप गिला प्रानियामालिक के नियमानाक्रमबी दियास अथवा 5 || सकर इत्यर्थः ॥३॥ गतिक सह | जी० संबनाई प्रवर्तत साकस तथामरल प्रार्थ |र्वथाजी विव3 नवाब नहीं। बिऊंपरिन सन जाक तो दारात्रितिरका लिर मिलाएका प्रादारास त्र्यंतियं ३॥ जीवांणालि कारकजा मरगांगो दिया| उदतेोदि कहतोमादिकषाय बाहि |० मम रामघर शारीर उपगरपादिक वा सिरा हित अन्वेषas॥ ५ वी लंगन करे जीविव तथामवत्प४ जीविवामरिवाविषनिपिकीय स०समाधियालयसमा मध्यस्व तथा निर्जराम सि विटाला ला 199 सोया | जीवितमात||१४|| मो शियारापेदा समादिमण पालय् त्र्ता नदिविउ सद्य। शचं मुद्दाम सए || कि० आगाऊ तक है। इससे पति जू से (लेषण का न मंतर हा विचारिलाल सत्र चरैव दिवसेष राशीक ६ ग्राममादिउपाश्रय अथवा चरण कोई उपक्रमाविषतले स्पसावले मना करता व चालको वातादिक रोग रीमाकालाध्य जाली स्फंक रवीषि ॥ दान उपाय नाथा ॥ ऊपजेति समाधिमरचीचा माडिया मंउपाय 25 ते करे वशी हितबुद्दिमेत कि लीया संगादिक करे तेरी उपसम्पश्च ली संलेषनाकर। श्रथवा जे किंचु वक्क मं जाणे | कारक मस्समासवत रहाए| खिप्प सिरक छपे किए ||६|| गामवा वा श्ले | थं S गिरिउद्यान गिरिफादि श्रप्राणी जीवविराधना र हि पाथरे । यथेो वित्तकालना ७ धावाक्तित्रिविधथवा उर्विधतिदीपरीसह उपगर फरस्पनांमनुष्य विषास्वडिल पहले ही नीतिला सुकमा लापारीक्फे करै तेक देव ॥ आहार बीहि । सेधार ॥ न सम्पक कारितयरिस मुकुल प्रतिकून सम्पक का रिजोशी। गी आल्यान यास॥परिसद फरम्या ते सम्पक प्रका मिलि दिया। अप्पप्पा एंव लाया | तपाई मुरादार ग्राहका (पुतबहिया सए । गाति)
SR No.650010
Book TitleAcharanga Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorMayachand Matthen
PublisherVikramnagar
Publication Year1736
Total Pages146
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_acharang
File Size75 MB
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