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________________ मासु०जेद्नीशी प्रभाब ऐसा वनाका लि दिमासीजवर नावजी केव अकस्मात ॥ विजाद कस्मादः एवात सिं | सुधरवाए | [] सुयन्नात्र | धाम्मलयंति | राजदेतं सगव्या पावतितं । च्या जाप ज्ञानप्रमाणि समस्तव स्कूजीन तथा पासया देषी सर्व जोक स्वरूप तिमय मेरा नरक है एतनेश्मकुट जेदन। तथापा समाचार अन्यास समजण्जे वादी बाद सीमामा प्रत इमक दिवउत्तेस्पछको जिम म्हेम तुष्टया किाहीएक पाषी दर्शनमा दिपम एनसाथ लाइन थव्यादिषट्का मारकर करामत करे करतेपकात वादी के दीया तिवारश्वासपात्र प्रतिज्ञाकालिका हर्वत्र पान निषेध न म्हनइएम निराकरिता ती सम्पकवर वाधवा व गौयरण वचननी गुप्तिकरवीरता तो बोल नही जो एप से कहतमेहनत पानुष्टान तिमी बीनही। एबी कबुलीने गजकही स्पइते | बीरबत रहरमा, हरजविवेक वषायपे उतिलिकोर लिडे किम करप॥ | सुपन्नेा | जाणाय्या | पास था। वागुत्री गाय रस्सा | त्रिबमि वः समय समयाव । तामद | वातिक्रम्मा ४० प्रो शिष्यांश वेति विवादिन्देजा, जेएाइकिल ही कारणिधर्मापइते रूकीयरिपन्नमनी ॥ सेजदेयं क० निम एम्या द्वादस्वरूप समस्त व्यवहारनन अकस्मादेशिक कारणको थी तिलिजा पडते एका बाल गोपाल संस्कृतन वारिताषा तवादीन उधर्मस्वारख्या व अकाउ इसी सूत्रमा बोल् प्रवविकहि प्रतिसतश्री सगर्वत श्रीवई मान स्वामिवैद्य उसे सगस के ॥ नही॥ उन्हसहित संज्ञा पुणक वाद वेगल २ हजइबोलिवन शुक्लर्जुन हीतवादन किसन] क दिवशिष्पनी चालना किमान शतप पापसममज्ञानी मियाद टी चारित्र पर दवा कि मते कष्टकर शीतातपा दिएद वाकष्टसबसे स्पासली पास मत तिवार श्री गुरू कदन वसवतिः केवल धर्मनी क जीवाजी न जाए तथा राषिव धर्म। तेन न थी इणि कारणितास मनोजते दुनीते हलायुक्त नथीपरिक है । गामेदा० जेस दिवे कवंत जीवा जीव म कूपरतात सम्पक परिचानाते हनन धर्मग मिश्रा र तिजी द्वार तिधर्मविवेकनगामि धर्मावताग्रामनगर धर्म करिए‍ श्रीस्वपरिज्ञान सम्पातिहजधर्म जाउ जेबाला मतिमती शंकर पवेदिक तो कल इस गर्व के धर्म क 35 ए समदं । शिवाग विद्यादिए। गामिवावा | राल | सावगाम | ऐवरण | धम्ममाथा पद पावदितं मादोए।। जामातविशेष त्रिणि दाद स्यालापातके सुपजेयामनइविष एवार्यमुक्तिमा संबुण्गुरुपदेशादि समु०म मुक्तिरता जेति बुत्तापावे० जे पापकर्म क्रोधादिक ते दूध की निबु हा प्राणातिपात मृषावादश्वरिय मीजीवार्य देशि अपना ॥ प्रतिबोधयाम्पावत कहतीतला उपसांत वितमापकर्मनवि शोदा ने मैकन परिहमो हजा ती श्यामच्यादरुपांत बइ ॥ शिवा कउय्य ॥ 4 | मईमया | जामा तिथि | उदादया । जसमा चारिया | मुंबुशमा रण । समुहिया | जणिला पावहिं । काम्महिं
SR No.650010
Book TitleAcharanga Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorMayachand Matthen
PublisherVikramnagar
Publication Year1736
Total Pages146
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_acharang
File Size75 MB
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