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________________ काल इंदांमा दामाद जे ऊपनुंबई ज्ञान दर्शणतेतीत वर्तमान श्रागमया जाएबई नाधरणदारबई) कालनी कालनी कालनी I " नई उपासग जालाई สริ आदरणाय बरफ रवाना कलमा दामाद | उपो रमा पदमं धरे। तीयं पशुपमा लागया| जा गए३ रित तीर्थंकर केवली सर्वज्ञ सर्व सर्वदेष | त्रिणि लोकनदि | मोटाइजनीक | देवता मनुष ष वंदनी क ६६ अरदास केवल सहनुस इदरिसी तिलोक वे दिया मदियपुश्य सदेव मरणु असुरकुमाररूप लोक अर्चना योग्प | वां दवायोग्प | पुजवा योग्य | सतकार वा योग्य सन्मान देवायोग्य या सुरम्म लोयस्म श्रञ्चलिये। वंद लिये प्रयोि । सक्का र लिछे समाएल लिखे चिंतन | सेवा कर वा योग्य ] | सत्यकि याते नी संपदा संयुक्त || कारी कारी रिडंत कनाणं मंगलं देवयं चिंतियं जावपकवास लिखे। तब कम्म संपया संपते। तेनइंतेमा वांदयो | सेवासक्तिकरयो] | पालियारा [बाजोट | पारीयो | घानक ६६ तेलं चर्मवदिद्यादि जावप कवासेद्यादि पाटिहारपयो। पीढ फलग सिद्या זי
SR No.650006
Book TitleUpasakadasanga Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorSomji Rishi
PublisherSurat
Publication Year1783
Total Pages202
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size29 MB
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