SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपासग 45 रंसी इंबई समाप्तं । | पास गदशांग नुं पांच मो अध्ययन चुलत कस्य ॥५॥ विब दो अध्ययन म निरखे वो ॥ उवासंग दसाणं पंचमंझणं समन्त्रं ॥ ५ ॥ बरवा एवं निश्चरे हे जंबू | तेकाल तेसमानई । किं पुलपुर नगर तो तिहां पुढवीसिलापट्ट | | सहे संबदन विष‍ खजु जंबु तेणंकालेश के पिल्ल पुरे नगरे पुढविसिलापट्टणचेइए सदम ||उद्यान | |जितशत्रुराजा । (ऊंड को जिन ग्रस्त व सब तेड्नई | पुंमा सार्या वरं । बहिर बवले नसाले जिया चुराया ऊंड को लिएगा दावती घूमा जारिया । बहिर एनी कोडि | | स्तुमिमां दुबई। (बहिरानी कोडी व्यापार नईविषदंबरं || बहिरएनी कोडिनो । एकोडी उनिदाएपना हिरण को डीन वहद्दीपन ज्ञान | बहिरण कोमी घर वाषरो बालक चोलादिक । बवर्ग्रदस सहस्रगाई। एक वर्ग पहवावर्ग | सामी समोरचा जिम पवित्ररपना बया दस गोसादस्तिपणं व् सामीस मो सद्दे कहा +परिवस्तर ६००००००० ६०००० ब प
SR No.650006
Book TitleUpasakadasanga Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorSomji Rishi
PublisherSurat
Publication Year1783
Total Pages202
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy