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________________ याच दराने अर्थे गयी साधूर्तिहांला नोतरायमाटे अजान परीस देवेनो० नोजन वादे के पिं०पिमादार ना०दर्यविश्वादरुपपश्च०एहवीसनानाइवे २०१जरानो संवृतेन शीपमोअजानपरी सहक देने पर पन्नीपथ के अलाव तापन करे पेणमित साहू२० जन्लान परेसन समेसेन्ना स्थनाघरने विवेष्या हारमेणा भोयोपरि निडीएलई विमेन देवा/ना एफपिंहिए | २० | अज्जे वादंनज शामि॥॥ आज रुंनी या मतो सुश्री दिनेयमि स्पेनी०जैसा जो वेच्या लाभ गजदिनेसियासिए वी जावना मुलीवरे १० दीनपणा सद० सेसा ने जानपरी सद्र्शतः बजेन वेगांमनोपटेलहतो पक्से जहा तो एकदा इबेवानां तरायटल स्पेतिवारेयाग रहितमन एबोधको छननजीते बेकरे तो एक वपने ईनो मानौ १नरेसेजी बनें अंतररायर अविलानो एसिया | जो एवं पडिसंचिके। अजानोतंनतर दो ते कर्मणा कुमारने नदेषाम्पो एकदा श्रीहनुमदायनी स्त्री दाते ट्र नोवटेवलकुमार वैराग्यश्री श्रीनेमिनाथनगवांनपा से दीक्षा ली ही गोवरी कुर्ता अंतरायकर्म शहारांमेन दी। साथ जे साथे फिरे तेवि दारनयां मे बीजे साधेने मिनाथ गलक द्योगोचरीयेसायेन जावां तिवारेन्टणा कुमारनगवां नपा से शारी निजी यो वहिस्याहारमैन जे वो आपली जबिकती मिळेतो या हारने तो इमनिपालांघ लोकानगयो | एकदा श्रीकृमा श्रीनेमिनाथने || भगवदजारसामे ऽक्कर हिटर नोकरदार कंजकेवल कणसी तिवारे/नेमिनाथ कह्यो | उमारो9 टंटला कमार / Sक्करकार ( | का आज केवजमस्ये | श्री नेमिनाथनो वचन सांगली तेवे श्रीकृष्ण बारामती द्यावत भिक्षा मांढरगा मारगनी मे देव्या भक्तिसहितवंदना की श्रीदवेको एक व्यवहारीये श्रीकामेवा दतादेवी चिंतमो (रामोटो सबै जेट्ने क्रम वादे ववां दे । तो एमा दरे घरे खावेतो एदने या दारकं । एद वोचितवी साधु नबोलायो व्यवहारीचे रुजतामोद काणा तेलेई ने मियासेागमागमा किमी भगवंतमाही अंतराय कर्मक्षयगयो जमे मोदक जाभा तिदांधी ने मिक है। । श्रीकृष्ण नीलब्धिवितादरी ननिथी एवो सांजली चिंतव्यो मुकने पर धनो आहारले होते नी आहारपरिहवा ने ते निदान नीरायमादिना तो कर्म नमाना | धन्य श्री नेमिनाथ ने मादरोप (राज्यो नही तो भंगवताना वनानावतां केवलज्ञान कपनी के जी एकवर केवल पर्याय पालमुक्त पती जिमटर मालानपरी सहसयो तिमी जे साधने पलिस दिनों । इत्यलाभपरीसदो परिदृष्टांतर‍ व ततनांलांनी शहारता करण ऽ ऽयतॉप पुषने फो अन्दीनपणार हि तथाणथर करे (नोबे90 रोगे या पोथ ति० रोगाला अर्थ संन्समा पिसादितति एमएसी | हारसाने रोगउपज नोमंनवते नलीरो मादिक वेदनाने 505 प०पोतानी पज्ञा अथिथातीऊई कोत० तिहांहि रोग रोगनोपीगलोकको क्षेतरूपा विधे गरी सहरमो कहेवेन जॉलीन उप वेदोको विचारे इम जागेमा दश कर्म नें उदेए रोगमा अदिया से ३२ नाव अनुमोदनही त्मानोगवेषक नेमली नज्ञानप्पश्टश्ऽरकं नो वेदलाएऽहहिए। पदी लोथा३९५|तन्त्र दियासए ३२ तिमिळं नाभिनंदिता | संविरकंता वेसण एवं
SR No.650005
Book TitleUttaradhyayana Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorGirdharlal
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1885
Total Pages286
LanguagePrakrit, Marugurjar
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size44 MB
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