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________________ जिम कोई एक पुरुष देखायुतो यात्रा एष्टतेजीच मने का मरीकी मजूई करीन देवा सेलकी या माथा देखाए हार को नथी सुगडागजी याजयमा उसे खो तर मे प्रयंबो एए दामेव जावसरीरंसेज हा नाम एकै पुरि से मरीनोम मिनिनिवहिताएं a प्राउमतो एकचरणी नें एपिले दृष्ट च्यात्माजी एमजे पुरुष 'वया रेषाहार को नथी असंत ६ एवी विद्यमानजी ने रुपन्ई पदस्वार कावजी लैकहै दंसे द्या' [मयमा सो प्रयमम एवामेव जाव सरीरेए कैम संति असं विद्यमाणे जे सिंत सुयरका यह वेवितं जेनेरो ने रस कारण कहने व खादि पृथिया सुरादिदा साथ लगा सद्सा कारें उद्यो साथि र बकी मिथ्या माईमवालीला दिषो उलो ल जीव तो जीवौ अन्तेसरी रेतनात मित्रास देता उपदेश जीवएनलोज जेतलो परं परलोकन दाई शरीर पलको नास्तिकवादी ने दवाई भाणात पात नई विषईदो पत्र्यांन अनेरानें पिएजी बधाननो उपदेश दीईनेक न ददखद बाद ददद पयद प्रालुपद विलुपद सहसाकारे विष्प हनेच्या वेंआपली इच्छा बाउ कि व्याखानु अक्रिया विरुा सुकनकी उन पीठ परलोका उप पापि तेन जीई ने न जाई नाईक नथीं नोए रामु सह एतावतावजी वैलिपर जोए गए मंदिष्पमिवैदेति तं किरिया द्रवाच् कि रियाना मुक्कापते बाप ते उपपन जी राई पापन जांई साधून जोपासावजी सिद्दिनजाले सिद्दिसंसार नारकीनना मनारकीनना पलें नास्तिक एह बजे नना इं न जाल राई ई मागलिंकमा नो एवयन सुधम्मस्वामी नह [9] करु58. तिहजारीरह पृष्टले प्रि पणादनिनें इवा 'कल्या रोए तिवा मात्र एतिना साइतिवासाहतिवा सिद्धीतिवासिद्धी तिवा नरेश तिवा अतर एतिबा'ए [तिनास्तिक मानोच नाव पहिबजीना नामका नानाप्रकार काम लोग समारंभोगवई पीपरेंएक के नास्तिकवादी निदि ४४ ६काई माह से कहे एआत्मा शरीरथी यो नया एना बनाते हजजीब एिसा वैति विरून रुबेदिकम्म समारं नहिं विश्वरूबाई काम-जोगाईसमारं नृति जोयशाएमा गतियां शिरकम्म माम [ ९६त्ररूपे तेनासिक वादांनो रुचिकरता तेहने तेहनें साङ्खुमा गोरु कोकले अनेरादर्शनी लगते खलु एवमच्य वियें जोक परलोक नो जयदेवा जीवनेनवारी रधर्म नि लेगा दो गंधम्मंपन्न वेति तेस द्दहमाणा तेरो माया पत्त्रियमाणा सा सुखस्काए समय तिवा माहो तिर्वा का मेखला म्यान असकरी पालकरी खादिमें स्वादिमई वस्त्रेईक पकिरी की बकरी कर कर्मनस मारनई करीन लामो सहना पा आयु हो तर कोक क ज उसो तुमंश्मयामि तं प्रसांवा मावा खाइ मेवा' साइमे एवा 'वाप डिप्रदेशना कंबलेांना याम लोकनासुद्धा बं तिकार पटी दर्शनी जो लवत ने कार तो उपगारनकानें अपकार कर w 2x35 ६
SR No.650004
Book TitleSuyagadanga Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1877
Total Pages154
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_sutrakritang
File Size69 MB
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