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________________ Ho समजुना षावि व ६ जिवातली रे ॥ इम का कौ नवच्न नरे॥ पापी यात्र बाप ला कैद जा जि का रे ।। विद्या मंत्र पुर बजे हरे तो बोले मामा सा मला रे ॥ मारौ T चार वैरि जौ को ईदोयरे ॥ पात कल घावै वै कुटका करुरे । ते हसिने भाजक रुचक चुररे। विद्यामिषबै में एनसी रे । तो ग प वापर भरपूर रे॥९० पा । ते सवै फैका रि एक दिसे रे।। नो व ती मुली षा पर्चा र रे ॥ क दिने घ मा ए बोले किस्प रे । ते तो सबल करे बै सौररे । १६ फ घम् ऐो बोले मानल षापरे। तो बोलै कवी वाम रे ।। इए छान कुक्षा में बैठे। बगराजा विक्रम जाए रे ।। ९२ पा॥ वानसुलीच म क्यों नरपति घरे देवात के इि तेहरे ॥ दोफा भूम महाज यो रे। घर दूर ने धुजा निज देहरे ॥ १३ ॥ काई क्ता दिविवारीयैरे नदिन र कर वोघ के संग्राम रें॥ ॐ काल ताबु क्या मैं कंचु न ही रे ॥ स्वादन को ला जगत्रा मरे १६ पा ॥ बोलै पालो मामा मान लो रे । ए तो मुर ष ट जा तारे ॥ए पुंजी भाषा, जीव नीरे ॥ ६ मा बेरिया 3 मैद रे ॥ १६ ॥ ॥ मामाजी विल इद्रा कुंप राजवीरे विक्रम तो है निज तायरे ॥ षा पर मिल जाऐ पाले कहि रेवान के दिने दायरे ॥११ पा ॥ सा जानुं मामिज मै जी को रे ॥ साल तो वैलरे जुगतिवा ! तकदि मन मै बसिरे तो साचौ मिलियो से पाप ॥ मा माजी सुज सामल वि Hley नतिरे । एघ मला उपर मुजरि मरे || पांच जिल मिल टीकर पांच द्यो रे। पाचप बै T SIGY TIVN
SR No.650003
Book TitleVikramaditya Chaupai
Original Sutra AuthorSomgani
Author
PublisherMansor
Publication Year1882
Total Pages44
LanguageHindi
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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