________________
बात जैए मज ऐसा | देवस क नदी लवलेस ॥ ६ वैबै काजा है द्वितिदी - का चार सैनी लाज ॥ ३ ॥ ६ मर्चितवि पति वा ॥ रघुनाद्य विविधामा करिना तोर हो । चोर है कि एन विज है। छापहिजे तेलला च वाचन च जाम कि जै वासति वा घनसार जवापार फिर पो बजावे चोरं विस्मै उपनामन जोर। कुत्रु बैबै कामकारव राजै सार ॥ दशमिठा ३ दार लाव. ६ क है जैसा ज्स कोमन राज ॥ द्वा॥ पविचार नेक है। ना मैया जेली र मेरा भार वाद एसमरथ ज्ञात पुजा के सात नीति वा श्राजगरात घुमी सुराल ३ ॥ रातदिवसमकित कसं उपा मंसिरभार येरा ६ मा चाले प्रकार दीपका मोद मापीठाल॥१६॥म तो साहिब मिली। शी परचारक है इस्पैौ। सुबर मुरुबाए रे । है तो वातक द्विजा का नाम का सकि नारेषण मारि उपाजे समस्त क करे मजूर रेत पा सेवा से नही कैसर, कस्तुरे र रामोजीरवार के चिताना का बरे । घरजिषमिवा मजि हातिहा प्रागै एथा परे ॥३ वा फिर पारक है। चार अतौ चैली रे चोरि निचिप बे ॥ जानीरे इक माह रे ॥ मिलने मे बेइरे घ र का मिनै काठ तो मानरि बड़ा इरे ॥ बाण बातापिता विलसता मन मा नै पु