________________ श्री कल्प मुक्तावल्या श्री शुद्धि // 12 // पृष्ठसंख्या तीटी अशुद्ध दाषः गोहिनो जिहूनता दोषः गेहिनो जिहवता जगौ कश्चिद् ललो मगा * * * * * * * * * * 10 3 9 कश्चिद लला सा सा नाकेतु पृष्ठसंख्या लीटी अशुद्ध शुद्ध 25 14 यमासेहिं य मासेहि 31 1. स्वग स्वर्ग 351 सट्टि सहि 'थर्वणवेदा थर्ववेदा वादश तादृश पावयन्कव पावयन् कादशी कीदृशी हन्ति इन्ति अणताहि अणंताहि हरिवस सिद्धौ सिद्धा मेत्तुं भेत्तुं प्रभोरा प्रभोरगे सौ योनिषु नागकेतु योनिषु m Gccc0m हरिवंस उच्युत्वा च्युत्वा सागरावम सागरोवम काडाकाडी कोडाकोडी // 12 //