________________ सर्गः६ | नवरात्रोत्सवाय मेरु गिरिंगता शारदा। // 17 // II AIII AISHII AII III यदा तव कृतं किञ्चिद् देवासुरनरैरपि / संभविष्यत्यनुल्लङ्घथं तदा शापाद् विमुच्यसे // 13 // स्मृतोपनतमन्यं च हंसमारुह्य शारदा / रणद्वीणागुणकाणं प्रतस्थे परमेश्वरी // 14 // सोऽपि हंसः प्रियामूचे कान्ते! पश्य किमागतम् / हन्त! गन्तव्यमावास्यां पृथिव्यां प्रभुशासनात् // 15 // अद्य दुरीभविष्यन्ति स्वर्गलोकसुखानि नौ / न मृषाभाषिणी देवी कल्पान्तेऽपि सरस्वती // 16 // सर्वस्वमपहर्तुं वा हन्तुं विक्रेतुमेव वा / योग्यं प्रभोश्च पित्रोश्च प्रतिकत्तुं तु नात्मनः भर्टमातृपितृस्वामिगुर्वाचार्योपहारिणाम् / निःशेषदोषदग्धानामपि पूजैव युज्यते // 18 // परार्थे मम सामर्थ्यमात्मार्थे तत् कथं नहि। ब्राह्मीविमानहंसोऽस्मि पश्य मे बुद्धिवैभवम् // 19 // अस्ति दक्षिणदिग्भागे भीमभूमीभुजः सुता / दमयन्तीति विख्याता नारीजनशिरोमणिः / // 20 // यदा स्वयंवरस्तस्या भविष्यति मृगीदृशः / तदा तत्रागमिष्यन्ति देवासुरनरोरगाः // 21 // अनागतमिदं ज्ञात्वा स्वामिनी नः सरस्वती / साहाय्याय च कन्यायाः स्वाजन्याय च नाकिनाम् // 22 // श्रन्याणि प्रेक्षणीयानि भिन्नभाषाणि कोटिशः। तदुत्सवोपयोगीनि रूपकाणि विधाय सा // 23 // ददौ तेष्वभिनेयानि भरताय महर्षये / नारदाय च गेयानि शिक्षापूर्वकमात्मना // 24 // (युग्मम् ) स्वराजकुलवृत्तान्तमिमं प्रागपि वेदयहम् / कल्ये सम्पातिपुत्रस्तु सुपार्थो मिलितो मम // 25 // मलयाचलवास्तव्यः स हि पौत्रो गरुत्मतः / खगेन्द्रो दरदर्शी च दूरभावी च सुन्दरि! // 26 // IISEIF FILE FIR FIR II // 12 // I