________________ सप्तमे स्कन्धे सर्गः२ रूपात् नलदेहात् निर्गतः कलिः // // 16 // Dil IIIIIIIII-IIIIII अहो कस्त्वमिति क्रोधात् स पृष्टो वैरसेनिना / कथश्चिद् विनमद् मूर्दा प्रत्युवाच स गद्गदम् देव ! दीनोऽस्मि मा कोपं कृपापर ! कुरुष्व तत् / पुण्यश्लोक ! सशोकं मां सौम्यदृष्ट्या विलोकय येन तेऽपहृतं राज्यं येन छूते मतिः कृता / यः प्रियात्यागहेतुस्ते येनेत्थं त्वं विडम्वितः स दुरात्मा दुराचारः करालः कलिरस्म्यहम् / समक्षं सर्वदेवानां प्राप्तोऽभूवं भवद्वधे त्वदीयं देहमास्थाय तस्थुषापि चिरं मया / दरेऽस्तु प्राणनाशस्ते न धैर्यमपि नाशितम् सत्यमेव सतां धैर्य दुर्जनैन विहन्यते / ज्वलन्नप्यनिशं कुर्यात् किमब्धौ वडवानल: राज्यभ्रंशमपि प्राप्य व्यामुढेनापि हि त्वया / न क्वचिद् भाषितं दैन्यं न लुप्तश्च विधिः क्वचित् तितिक्षात्यागशीलेन सत्यसन्तोषवृत्तिना / परद्रव्यनिरीहेण वाहिता दिवसास्त्वया अनाकासमनीप्लुमहिंसकमनिन्दकम् / समर्थमपि दुःखेषु नाद्राक्षं त्वामिवापरम् यद् दहन्ति न मार्तण्डा न क्षुभ्यन्ति यदब्धयः / यच्च शक्त्या तितिक्षन्ते तेनेदं वर्तते जगत् न शक्तं सर्वथा राजन् ! कत्तु किश्चिद् मया त्वयि / केवलं देव ! दग्धोऽस्मि वैदर्भीशापवहिना तदित्थं यातनालक्षैः प्रापितः प्राणसंशयम् / एष त्यक्त्वा भवद्गात्रं निर्गतोऽस्मि जिजीविषुः क्षमस्व मे महाराज ! दुविनीतस्य दुष्कृतम् / अगोचरचरित्रस्त्वं वीरसेनकुलोद्वह ! नास्ति भग्नप्रतिज्ञस्य दिवि देवेषु मे स्थितिः / तद्विभीतक एवायं शरणं सर्वथा मम // 20 // // 21 // // 22 // // 23 // // 24 // // 25 // // 26 // // 27 // // 28 // // 29 // // 30 // DISIAISINII A MEII SAI AISI // 32 // // 33 // // 16 //