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________________ DAITSEDDATDEFINEDIC प्राप्तविद्योऽतिगंभीरः श्रीहर्षविजयो मुनिः / राधनपुरमायात-विहरन् गुरुभिः समम् // 8 // व्योमjङ्कहिमांशु (1970) वर्षकमिते मार्गे सिते वै दले / मासे विश्वतिथौ च राधनपुरे श्रीसद्गुरोः सन्निधौ // तत्रैवाथ मुनीश्वरो गणिपदं राकातिथौ प्राप्तवान् / पन्न्यासास्पदभूषितोऽभवदपि प्रौढप्रतापो मुनिः // 9 // वर्षेष्टनागनिधिचंद्रमिते ( 1988 ) फलोद्यां / षष्ठयां तिथौ सितदले शुभशुक्रमासे // श्रीनीतिमूरिसुगुरोः कृपया नगर्या / सूरीस्वरास्पदमथपिरलञ्चकार // 10 // बृहस्पतिसमं ज्ञाने राकेन्दुमिव निर्मलं / प्रताप भानुतुल्यं तं, क्षमायां पृथिवीनिभम् // 11 // समुद्रमिव गांभीर्ये दयामूर्ति तपस्विनम् / सत्यधर्मोपदेष्टारं भवसागरतारकम् // 12 / / विजयहरसूरीशं षट्त्रिंशद्गुणसंयुतम् / श्रीमन्महेन्द्रसूरीशः शान्तो ज्ञानतपो निधिः // 13 // शास्त्रपारंगतः सौम्यः कल्याणमूरिपुङ्गवः / पन्यासपदसंमान्यो मङ्गलविजयो गणिः // 14 // सुमतिः पूर्णानन्दो जिनेन्द्रविजयस्तथा / एषा शिष्यावलिर्भक्त्या, मुहुः स्तौति सदागुरुम् // 15 // बाणेन्दु खाक्षिमिति (2015) वैक्रमवत्सरे तृ-तोयादिने गुरुवराय तपस्यमासे / शुक्ले. जिनेन्द्रविजयेन' कृतार्पिता च, श्रीहर्षमूरिसुगुरोर्लघुजीवनामा // 16 // 1 श्रीपूज्य विजयजिनेन्द्रसूरि म. धनारीवाला। . * इति श्री विजयहर्षसूरीशलघुजीवनप्रभा . OXESSEN ESIKTADORSIDEN // 9 //
SR No.600448
Book TitleGyansarashtakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherVadilal Mohakambhai Vakil
Publication Year1962
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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