________________ . आवश्यकनियुक्तेरव चूर्णिः नमस्कारनियुक्तिः नि० गा. 10211025 // 426 // पुवाणुपुब्वि न कमो नेव य पच्छाणुपुब्वि एस भवे / सिद्धाइआ पढमा बीयाए साहुणो आई // 1021 // इह क्रमो द्विधा-पूर्वानुपूर्वी पश्चानुपूर्वी च, तत्रायमर्हदादिक्रमः पूर्वानुपूर्वी न, सिद्धाद्यनभिधानात् कृतकृत्यत्वेनाहन्नमस्कार्यत्वेन च सिद्धानां प्रधानत्वात् , तथा नैव पश्चानुपूर्वी एष क्रमः, साध्वाधनभिधानात् // 1021 // पूर्वानुपूर्वीत्वमेवाह अरहंतुवएसेणं सिद्धा नजंति तेण अरिहाई / नवि कोई परिसाए पणमित्ता पणमई रणो॥१०२२॥ प्रयोजनफले आहइत्थ य पओअणमिणं कम्मक्खओ मंगलागमो चेव / इहलोअपारलोइअ दुविह फलं तत्थ दिटुंता // 1023 // नमस्कारकरणकाल एव प्रयोजनमिदं-कर्मक्षयस्तथा मङ्गलागमश्चैव, कालान्तरभावि पुनरैहलौकिकपारलौकिकभेदभिन्नं | द्विविधं फलं // 1023 // इह लोइ अत्थकामा 2 आरुग्गं 3 अभिरई 4 अनिष्फत्ती 5 / सिद्धी अ६ सग्ग 7 सुकुलपच्चायाई 8 अ परलोए // 1024 // अभिरतेश्च निष्पत्तिः, सुकुलप्रत्यायातिश्च परलोके // 1024 // यथाक्रममादीनधिकृत्योदाहरणान्याहइहलोगंमि तिदंडी 1 सादिव्वं 2 माउलिंगवण 3 मेव / परलोइ चंडपिंगल 4 हुंडिअजक्खो 5 अ दिटुंता॥१०२५॥ अर्थे-त्रिदण्डयुपलक्षितः श्राद्धपुत्रः, कामप्राप्तौ देवतानुभाववती श्राद्धपुत्री, मातुलिङ्गवनोपलक्षितश्राद्धेनारोग्यमभिरतिश्च लेभे, परलोके फलं वसन्तपुरे जितशत्रुप्रियाहारचौर्यात् शूल्यां क्षिप्तश्चण्डपिङ्गलचौरो गणिकादत्तनमस्कारस्तयैव निदानं // 426 // RKA