________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् 40 शतके सूत्रम् 865 अभवसिद्धियमहाजुम्मसयं भाग-३ // 1627 // सुक्कलेस्सा वा नो सम्मदिट्ठी मिच्छादिट्ठी नो सम्मामिच्छादिट्ठी नो नाणी अन्नाणी एवं जहा कण्हलेस्ससए नवरं नो विरया अविरया नो विरयार संचिट्ठणा ठिती य जहा ओहिउद्देसए समुग्धाया आदिल्लगा पंच उव्वट्टणा तेहव अणुत्तरविमाणवलं सव्वपाणा णो तिणढे समढे सेसं जहा कण्हलेस्ससए जाव अणंतखुत्तो, एवं सोलसवि जुम्मेसु। सेवं भंते! 2 त्ति // 2 पढमसमयअभवसि०कडजुम्मरसन्निपंचिंदियाणं भंते! कओ उवव०?, जहा सन्नीणं पढमसमयउद्देसए तहेव नवरं सम्मत्तंसम्मामिच्छत्तं नाणंच सव्वत्थ नत्थि सेसं तहेव! सेवं भंते! रत्ति // एवं एत्थवि एक्कारस उद्देसगा कायव्वा पढमतइयपंचमा एक्कगमा सेसा अट्ठवि एक्कगमा। सेवं भंते! रत्ति // पढमं अभवसि०महाजुम्मसयं सम्मत्तं // चत्तालीसमसए पन्नरसमं सयं सम्मत्तं // 15 // 1 कण्हलेस्सअभवसि०कडजुम्मरसन्निपंचिंदिया णं भंते! कओ उवव०?, जहा एएसिं चेव ओहियसयं तहा कण्हलेस्ससयंपि नवरं ते णं भंते! जीवा कण्हलेस्सा?, हंता कण्हलेस्सा , ठिती संचिट्ठणा य जहा कण्हलेस्सासए सेसं तं चेव / सेवं भंते! रत्ति // बितियं अभवसि०महाजुम्मसयं // 40 सते सोलसमं संमत्तं ॥१६॥१एवं छहिवि लेस्साहिं छ सया कायव्वा जहा कण्हलेस्ससयं नवरंसंचिट्ठणा ठिती य जहेव ओहियसए तहेव भाणियव्वा, नवरं सुक्कलेस्साए उ० एक्कतीसं सागरोवमाइं अंतोमुत्तमब्भहियाई, ठिती एवं चेव नवरं अंतोमुहत्तं नत्थि जहन्नगंतहेव सव्वत्थ सम्मत्तनाणाणि नत्थि विरई विरयाविरई अणुत्तरविमाणोववत्ति एयाणि नत्थि, सव्वपाणा० णो तिणढे समढे। सेवं भंते! रत्ति ॥एवं एयाणि सत्त अभवसिद्धियमहाजुम्मसया भवन्ति / सेवं भंते! रत्ति ॥एवं एयाणि एक्कवीसं सन्निमहाजुम्मसयाणि।सव्वाणिवि एक्कासीतिमहाजुम्मसया सम्मत्ता // सूत्रम् ८६५॥चत्तालीसतिमंसयंसम्मत्तं // 40 // उक्कोसेणं तेत्तीसंसागरोवमाइं अंतोमुत्तमब्भहियाई ति, इदं कृष्णलेश्याऽवस्थानं सप्तमपृथिव्युत्कृष्टस्थितिं पूर्वभवपर्यन्तवर्त्तिनं // 16 27 //