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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1607 // 34 शतके उद्देशकः 2-11 सूत्रम् 852-854 एकेन्द्रियशतानि 12 एक्कारस उद्देसगा। सूत्रम् 853 // ३४-४॥पढम एगिदियसेढीसयं सम्मत्तं / / १कइविहाणं भंते! कण्हलेस्सा एगिदिया पं०?, गोयमा! पंचविहा कण्हलेस्सा एगिंदिया प० भेदो चउक्कओ जहा कण्हलेस्सएगिदियसए जाव वणस्सइकाइयत्ति / 2 कण्हलेस्सअपज्जत्तासुहुमपुढविकाइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरच्छिमिल्ले एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिउद्देसओ जाव लोगचरिमंतेत्ति सव्वत्थ कण्हलेस्सेसु चेव उववाएयव्वो। 3 कहिन्नं भंते! कण्हलेस्सअपज्जत्तबायरपुढविकाइयाणं ठाणा प० एवं एएणं अभि० जहा ओहिउद्दे० जाव तुल्लट्ठिइयत्ति / सेवं भंते! रत्ति // एवं एएणं अभि० जहेव पढम सेढिसयं तहेव एक्कारस उद्देसगा भा०॥३४-११॥ बितियं एगिदियसेढिसयं सम्मत्तं // एवं नीललेस्सेहिवि तइयं सयं / काउलेस्सेहिवि सयं, एवं चेव चउत्थं सयं / भविसिद्धियएहिवि सयं पंचमं सम्मत्तं // १कइविहाणं भंते! कण्हलेस्सा भवसिद्धिया पन्नता, एवं जहेव ओहिय उद्देसओ, 2 कइविहाणं भंते! अणंतरोववन्ना कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिंदिया प० जहेव अणंतरोववन्नउद्देसओ ओहिओतहेव / 3 कइविहाणंभंते! परंपरोववन्ना कण्हलेस्सभवसिद्धिया एगि०प०?, गोयमा! पंचविहा परंपरोववन्ना कण्हलेस्सभवसि०एगिंदिया पं० ओहिओ भेदो चउक्कओ जाव वणकाइयत्ति / 4 परंपरोववन्नकण्हलेस्स भवसिद्धियअपज्जत्तसुहुमपुढविकाइएणं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए एवं एएणं अभि० जहेव ओहिओ उद्देसओजावलोयचरमंतेत्ति, सव्वत्थ कण्हलेस्सेसुभवसिद्धिएसु उववाएयव्वो।५ कहिन्नं भंते! परंपरोववन्नकण्हलेस्सभवसिद्धियपज्जत्तबायरपुढविकाइयाणं ठाणा प० एवं एएणं अभि० जहेव ओ० उद्दे० जाव तुल्लट्ठिइयत्ति, एवं एएणं अभि० कण्हलेस्सभवसि०एगिदिएहिवि तहेव एक्कारसउद्देसगसंजुत्तं सतं छटुं सतं सम्मत्तं // नीललेस्सभवसि०एगिदिएसु सयं सत्तमं सम्मत्तं / एवं काउलेस्सभवसि०एगिदियेहिवि सयं अट्ठमं सयं / जहा भवसिद्धिएहिं चत्तारि सयाणि एवं अभवसिद्धिएहिवि चत्तारि सयाणि // 1607 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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