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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-३ // 1535 // 25 शतके उद्देशक: 7 सूत्रम् 802 तपोभेदाः अणच्चासादणया अरिहंतपन्नत्तस्स धम्मस्स अणच्चासा० आयरियाणं अणच्चासा० उवज्झायाणं अणच्चासा० थेराणं अणच्चासा० कुलस्स अणच्चासा० गणस्स अणच्चासा० संघस्स अणच्चासा० किरियाए अणच्चासा० संभोगस्स अणचासा० आभिणिबोहियनाणस्स अणच्चासा० जाव केवलनाणस्स अणच्चासा०१५, एएसिंचेव भत्तिबहुमाणेणं एएसिंचेव वन्नसंजलणया, सेत्तं अणच्चासायणयाविणए, सेत्तं दंसणविणए, 131 से किंतं चरित्तविणए?, च 2 पंचविहे पं०, तं० सामाइयचरित्तविणए जाव अहक्खायचरित्तविणए, सेत्तं चरित्तविणए, 132 से किं तं मणविणए?, म०२ दुविहे पं०, तं० पसत्थमणवि० अपसत्थमणवि० य, 133 से किं तं पसत्थमणविणए?, पस०२ सत्तविहे प०, तंजहा- अपावए असावजे अकिरिए निरुवक्केसे अणण्हवकरे अच्छविकरे अभूयाभिसंकणे, सेत्तं पसत्थमणविणए, १३४से किंतं अपसत्थमणविणए?, अप्प०२ सत्तविहे पं०, तं० पावए सावजेसकिरिए सउवक्केसे अण्हवयकरे छविकरे भूयाभिसंकणे, सेत्तं अप्पसत्थमणविणए, सेत्तं मणविणए, 135 से किंतंवइविणए?,व०२ दुविहे पं० 20 पसत्थवइविणए अप्पसत्थवइविणए य, 136 से किं तं पसत्थवइविणए?, प० 2 सत्तविहे पं०, तं०- अपावए जाव अभूयाभिसंकणे, सेत्तं पसत्थवइविणए, 137 से किं तं अप्पसत्थवइविणए?, अ० 2 सत्तविहे पं०, तं०- पावए सावज्जे जाव भूयाभिसंकणे, सेत्तं अपसत्थवयविणए, सेतं वयविणए, 138 से किंतं कायवि०?,२दुविहे प०, तं० पसत्थकायविणए य अप्पसत्थकायविणए य, 139 से किं तं पसत्थकायवि०?, पस०२ सत्तविहे पं० तंजहा- आउत्तं गमणं, आउत्तं ठाणं, आउत्तं निसीयणं, आउत्तं तुयट्टणं आउत्तं उल्लंघणं, आउत्तं पल्लंघणं, आउत्तं सव्विंदियजोगजुंजणया, सेत्तं पसत्थकायविणए, 140 से किंतं अप्पसत्थकायविणए?, अ०२ सत्तविहे पन्नत्ते, तंजहा- अणाउत्तंगमणंजाव अणाउत्तं सविंदियजोगजुंजणया, सेत्तं अप्पसत्थकायविणए, सेत्तं कायविणए, 141 से किं तं लोगोवयारविणए?, लोगो० 2 सत्तविहे पं०, तं० अब्भासवत्तियं परच्छंदाणुवत्तियं कजहेऊ कयपडिकतिया // 1535 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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