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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1337 // 21 शतके वर्गाः२-१० सूत्रम् 690 मंडुक्किमूलगसरिसवअंबिलसाग-जिवंतगाणं एएसिणंजे जीवा मूल एवं एत्थवि दस उद्देसगा जहेव वंसस्स ॥सत्तमो वग्गोसमत्तो ॥२१-७॥१अह भंते! तुलसीकण्हदलफणेजाअज्जाचूयणाचोराजीरादमणामरुयाइंदीवरसयपुप्फा णं एएसिणंजे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति एत्थवि दस उद्देसगा निरवसेसं जहा वंसाणं / अट्ठमो वग्गो समत्तो॥२१-८॥ एवं एएसु अट्ठसु वग्गेसु असीतिं उद्देसगा भवंति ॥सूत्रम् 690 // एक्कवीसतिमंसयं समत्तं // 21 // एवं समस्तोऽपि वर्ग: सूत्रसिद्धः, एवमन्येऽपि नवरमशीतिर्भङ्गा एवं-चतसृषु लेश्यास्वेकत्वे 4 बहुत्वे 4 तथा पदचतुष्टये 8 षट्सु द्विकसंयोगेषु प्रत्येकं चतुर्भङ्गिकासद्भावात् 24 तथा चतुर्षु त्रिकसंयोगेषु प्रत्येकमष्टानां सद्भावात् 32 चतुष्कसंयोगेच 16 एवमशीतिरिति, इह चेयमवगाहनाविशेषाभिधायिका वृद्धोक्ता गाथा मूले कंदे खंधे तयाय साले पवालपत्तेय सत्तसुवि धणुपुहुत्तं अंगुलिमो पुप्फफलबीए॥१॥ इति॥१॥॥६९०॥ एकविंशतितमशतं वृत्तितः परिसमाप्तम् // 21 // एकविंशंशतं प्रायो, व्यक्तं तदपिलेशतः। व्याख्यातं सद्गुणाधायी, गुडक्षेपो गुडेऽपि यत् // 1 // // इति श्रीमचन्द्रकुलनभोनभोमणिश्रीमदभयदेवाचार्यवर्यविहितविवरणयुतं श्रीमद्भगवतीवृत्तौ एकविंशं शतकं समाप्तम्॥ // 1337 // (r) मूले कन्दे स्कन्धे त्वचि शाले प्रवाले पत्रे च / सप्तस्वपि धनुष्पृथक्त्वं पुष्पफलबीजेष्वङ्गलीपृथक्त्वम् / / 1 / /
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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