________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 1068 // 14 शतके उद्देशक:५ अग्न्यधिकारः। सूत्रम् 515 नारकासुरैकद्वित्रिचतु:तिक पवेन्द्रियानामग्निमध्येगमनप्रश्नाः / ॥चतुर्दशशतके पञ्चमोद्देशकः॥ चतुर्थोद्देशके परिणाम उक्त इति परिणामाधिकाराव्यतिव्रजनादिकं विचित्रं परिणाममधिकृत्य पञ्चमोद्देशकमाह, तस्य चेदमादिसूत्रम् १नेरइए णं भंते! अगणिकायस्स मज्झमज्झेणं वीइवएज्जा?, गोयमा! अत्थेगतिए वीइवएजा अत्थे० नो वीइ० , से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ अत्थे० वीइ० अत्थे० नोवीइ.?, गोयमा! ने दुविहा प०, तंजहा-विग्गहगतिसमावन्नगा य अविग्गहगतिसमा० य, तत्थ णंजे से विग्गहगतिसमावन्नए नेरतिए से णं अगणिकायस्स मज्झंम० वीइ०, सेणं तत्थ झियाएजा?,णो तिणढे समढे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ, तत्थ णं जे से अविग्गहगइसमावन्नए ने० से णं अगणिकायस्स मज्झम० णो वीइ०, से तेणटेणं जाव नो वीइ०॥ 2 असुरकुमारे णं भंते! अगणिकायस्स पुच्छा, गोयमा! अत्थे० वीइ० अत्थे० नो वीइ०, से केण. जाव नो वीइ०?, गोयमा! असुरकु. दुविहा प०, तंजहा-विग्गहगइसमावन्नगा य अविग्गहगइसमा य, तत्थ णंजे से विग्गहगइसमावन्नए असुरकु० सेणं एवं जहेव नेरतिए जाव वक्कमति, तत्थ णंजे से अविग्गहगइसमावन्नए असुरकु० सेणं अत्थे• अगणिकायस्स मज्झंम० वीती० अत्थे० नो वीइव०, जेणं वीती० से णं तत्थ झियाएजा?, नो ति० स०, नोखलु तत्थ सत्थं कमति, से तेण एवं जाव थणियकु०, एगिदिया जहा नेरइया / 3 बेइंदिया णं भंते! अगणिकायस्स मज्झंम० जहा असुरकु० तहा बेइंदिएवि, नवरंजेणं वीयी० सेणं तत्थ झियाएजा?, हंता झिया०, सेणं तं चेव एवं जाव चउरिदिए॥ 4 पंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! अगणिकायपुच्छा, गोयमा! अत्थे० वीइ० अत्थे० नो वीइ०, से तेणटेणं?, गोयमा! पंचिंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा प०, तंजहा-विग्गहगतिसमावन्नगाय अविग्गहगइसमा० य, विग्गहगइसमावन्नए जहेव नेरइए जाव नोखलु तत्थ सत्थंकमइ, अविग्गहगइसमावन्नगापंचिंदियतिरिक्ख 8 // 1068 //