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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-१ | // 526 // णामभावो यत्र तत् प्रकामनिकरणं तद्यथा भवतीत्येवं वेदनां वेदयतीति प्रश्नः, उत्तरं तु जे ण मित्यादि, यो न प्रभुः समुद्रस्य पारं गन्तुं तद्गतद्रव्यप्राप्त्यर्थे सत्यपि तथाविधशक्तिवैकल्यात्, अत एव च यो न प्रभुः समुद्रस्य पारगतानि रूपाणि द्रष्टुं स तद्गताभिलाषातिरेकात् प्रकामनिकरणं वेदनां वेदयतीति // 292 / / सप्तमशते सप्तमः॥७-७॥ ॥सप्तमशतकेऽष्टमोद्देशकः॥ सप्तमोद्देशकस्यान्ते छाद्मस्थिकं वेदनमुक्तमष्टमे त्वादावेव छद्मस्थवक्तव्यतोच्यते , तत्र चेदं सूत्रम् 1 छउमत्थे णं भंते! मणूसे तीयमणंतं सासयं समयं केवलेणं संजमेणं एवं जहा पढमसए चउत्थे उद्देसए तहा भाणियव्वं जाव अलमत्थु // सूत्रम् 293 // २से णूणं भंते! हथिस्स य कुंथुस्स य समे चेव जीवे?, हंता गोयमा! हत्थिस्स कुंथुस्स य, एवं जहा रायप्पसेणइज्जे जाव खुड्डियं वा महालियंवा से तेणटेणंगोयमा! जाव समे चेव जीवे।।सूत्रम् 294 // 1 छउमत्थे ण मित्यादि, एतच्च यथा प्राग् व्याख्यातं तथा द्रष्टव्यम् // 293 // 2 अथ जीवाधिकारादिदमाह से णूण मित्यादि, एवं जहा रायप्पसेणइज्जे त्ति, तत्र चैतत्सूत्रमेवं समे चेव जीवे, से णूणं भंते! हत्थीओ कुंथू अप्पकम्मतराए चेव अप्पकिरिय० चेव अप्पासव० चेव कुंथुओ हत्थी महाकम्म० चेव 4?, हंता गोयमा! / कम्हा णं भंते! हत्थिस्स य कुंथुस्स य समे चेव जीवे?, गोयमा! से जहानामए- कूडागारसाला सिया दुहओ लित्ता गुत्ता गुत्तदुवारा निवाया निवायगंभीरा अहे णं केई पुरिसे पईवं च जोई च गहाय तं कूडागारसालं अंतो 2 अणुपविसेइ २त्ता तीसे कूडा गारसालाए सव्वओ 7 शतके उद्देशक:८ छास्थमनुष्याधिकारः। सूत्रम् 293 छद्मस्थस्य केवलसंयमेन सिद्धिप्रश्नः। यथा॥९-४॥ सूत्रम् 294 हस्थिकुन्थ्वोः समजीवत्व प्रश्राः / // 526 //
SR No.600443
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages578
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size39 MB
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