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________________ [1] उपक्रमः। शा० उपक्रमः। श्रीअनुयोगद्वारंमलधारि श्रीहेमचन्द्रसूरि वृत्तियुतम्। // 171 // |१.२नाम। सूत्रम् |210-216 1.2.2 द्विनाम। गब्भवक्कंतियचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिए य अपज्जत्तयगब्भवक्कंतियचउप्पय थलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिए य, अविसेसिए परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिए, विसेसिएउरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिए य भुयपरिप्पथलयरपंचेंद्रियतिरिक्खजोणिएय। एवं समुच्छिमा पजत्ता अपज्जत्ताय गब्भवक्कंतियाविपचत्ता अपनत्ता य भाणियव्वा / (11) अविसेसिए खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिए, विसेसिए समुच्छिमखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिए य गब्भवतंतियखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिए य। अविसेसिए समुच्छिमखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिए, विसेसिए पजत्तयसमुच्छिमखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिए य अपनत्तयसंमुच्छिमखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिए य। अविसेसिए गब्भवक्वंतियखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिए, विसेसिए पजत्तयगब्भवक्कंतियखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिए य अपज्जत्तयगब्भवक्त्रंतियखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिएय। (12) अविसेसिएमणुस्से, विसेसिए समुच्छिममणूसे य गन्भवक्त्रंतियमणुस्से यू, अविसेसिएसंमुच्छिममणूसे, विसेसिएपनत्तयसमुच्छिममणूसे य अपज्जत्तगसंमुच्छिममणूसे य / अविसेसिएगब्भवक्वंतियम से, विसेसिए पज्जत्तयगन्भवक्वंतियमणूसे य अपज्जत्तयगन्भवक्वंतियमणूसे य। (13) अविसेसिए देवे, विसेसिए भवणवासी वाणमंतरे जोइसिए वेमाणिए य, अविसेसिए भवणवासी, विसेसिए असुरकुमारे एवं नाग० सुवण्ण विजु० अग्गि० दीव० उदधि० दिसा० वात० थणियकुमारे / सव्वेसिपि अविसेसिय विसेसिय पज्जत्तयअपज्जत्तयभेया भाणियव्वा / (14) अविसेसिये वाणमंतरे, विसेसिए पिसाए भूते जक्खे रक्खसे किण्णरे किंपुरिसे महोरगे गंधव्वे। एतेसिपि अविसेसि विसेसिय पज्जत्तयअपज्जत्यभेदाभाणियव्वा / (15) अविसेसिए जोइसिए, विसेसिए चंदे सूरे गहे 0 चिं। 0 एवं' स्थाने 'एतेऽवि' इत्यस्ति। 0 पज्जतगा अपज्जतगा। 0 खयर। 7 णुस्से। (c) 'विसेसिए.....मणूसे' य स्थाने 'कम्मभूमिओ य अकम्मभूमिओ य अंतरदीवओ य संखिज्जवासाउय असंखिज्जवासाउय पज्जत्तापजत्तओं' इति वर्तते। 0 ग। ©दा। (c) 'गहगणे' इत्यस्ति / // 171 //
SR No.600442
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_anuyogdwar
File Size31 MB
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