________________ श्रीसमवायाङ्ग श्रीअभय० वृत्तियुतम् // 264 // सूत्रम् 156-157 वेदाधिकारः विमला य पंचवण्णा सागरदत्ता यणागदत्ता य॥१६।। अभयकर निव्वुइकरा मणोरमा तह मणोहरा चेव। देवकुरूत्तरकुरा विसाल चंदप्पभा सीया // 17 // एआओ सीआओ सव्वेसिं चेव जिणवरिंदाणं / सव्वजगवच्छलाणं सव्वोउगसुभाए छायाए // 18 // पुल्विं ओक्खित्ता माणुसेहिं साह(8) रोमकूवेहि। पच्छा वहंति सीअं असुरिंदसुरिंदनागिंदा॥१९॥चलचवलकुंडलधरा सच्छंदविउव्वियाभरणधारी / सुरअसुरवंदिआणं वहति सीअं जिणंदाणं // 20 // पुरओ वहंति देवा नागा पुण दाहिणम्मि पासम्मि / पञ्चच्छिमेण असुरा गरुला पुण उत्तरे पासे // 21 // उसभो अविणीयाए बारवईए अरिट्ठवरणेमी। अवसेसा तित्थयरा निक्खंता जम्मभूमीसु ॥२२॥सव्वेवि एगदूसेण (णिग्गया जिणवरा चउव्वीसं / ण यणाम अण्णलिंगेण य गिहिलिंगे कुलिंगे य॥२३॥) एक्को भगवं वीरो (पासो मल्ली य तिहि तिहि सएहिं / भगवंपि वासुपुज्जो छहिं पुरिससएहिं निक्खंतो॥ 24 // ) उग्गाणं भोगाणं राइण्णाणं (चखत्तियाणं च / चउहिं सहस्सेहिं उसभो सेसा उ सहस्सपरिवारा // 25 // ) सुमइत्थ णिच्च भत्तेण (णिग्गओवासुपुज चोत्थेणं / पासो मल्ली य अट्ठमेण सेसा उछट्टेणं // 26 // ) एएसिंणं चउव्वीसाए तित्थगराण चउव्वीसं पढमभिक्खादायारो होत्था, तंजहा- सिज्जंस बंभदत्ते सुरिंददत्ते य इंददत्ते य / पउमे य सोमदेवे माहिदे तह सोमदत्ते य ॥२६॥पुस्से पुणव्वसू पुण्णणंद सुणंदे जये य विजये य। तत्तो य धम्मसीहे सुमित्त तह वग्गसीहे अ॥२७॥ अपराजिय विस्ससेणे वीसइमे होइ उसभसेणे य। दिण्णे वरदत्ते धणे बहुले य आणुपुव्वीए॥२८॥ एए विसुद्धलेसा जिणवरभत्तीइ पंजलिउडा उ / तं कालं तं समयं पडिलाभेई जिणवरिंदे॥२९॥ संवच्छरेण भिक्खा (लद्धा उसभेण लोयणाहेण / सेसेहि बीयदिवसे लद्धाओ पढमभिक्खाओ॥३०॥) (उसभस्स पढमभिक्खा खोरयरसो आसि लोगणाहस्स। सेसाणं परमण्णं अमियरसरसोवमं आसि ॥३१॥)सव्वेसिपि जिणाणंजहियंलद्धाउ पढमभिक्खाउ। तहियं वसुधाराओ सरीरमेत्तीओ वुट्ठाओ // 32 // एएसिं चउव्वीसाए तित्थगराणं चउवीसं चेइयरुक्खा होत्था, तंजहा // 264 //