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________________ श्रीस्थानाङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ / / 720 // नेतव्वं // सूत्रम् 582 // चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो दुमस्स पायत्ताणिताहिवतिस्स सत्त कच्छाओ पं० तं०- पढमा कच्छा जाव सत्तमा कच्छा, चमरस्स णमसुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो दुमस्स पायत्ताणिताधिपतिस्स पढमाए कच्छाए चउसट्ठिदेवसहस्सा पं० जावतिता पढमा कच्छा तब्बिगुणा दोच्चा कच्छा तब्बिगुणा तच्चा कच्छा एवं जाव जावतिता छट्ठा कच्छा, तब्बिगुणा सत्तमा कच्छा / एवं बलिस्सवि, णवरं महहुमे सट्ठिदेवसाहस्सितो, सेसंतंचेव, धरणस्स एवं चेव, णवरमट्ठावीसं देवसहस्सा, सेसंतंचेव, जधा धरणस्स एवं जाव महाघोसस्स, नवरं पायत्ताणिताधिपती अन्ने ते पुव्वभणिता / सक्कस्सणं देविंदस्स देवरन्नो हरिणेगमेसिस्स सत्त कच्छाओ पन्नत्ताओपं० तं०- पढमा कच्छा एवं जहा चमरस्स तहा जाव अच्चुतस्स, णाणत्तं पायत्ताणिताधिपतीणंतेपुव्वभणिता, देवपरीमाणमिमंसक्कस्सचउरासीतिं देवसहस्सा, ईसाणस्स असीती देवसहस्साई, देवा इमातेगाथाते अणुगंतव्वा- 'चउरासीति असीति बावत्तरि सत्तरी य सट्ठीया / पन्ना चत्तालीसा तीसा वीसा दससहस्सा // 1 // ' जाव अचुतस्स लहुपरक्कमस्स दसदेवसहस्सा जाव जावतिता छट्ठा कच्छा तब्बिगुणा सत्तमा कच्छा // सूत्रम् 583 // अहे त्यादि सूत्रसिद्धम्, नवरमथेति परिप्रश्नार्थः, भदन्तेति गुर्वामन्त्रणं अयसी ति अतसी कुसुंभो- लट्टा रालकःकङ्गविशेषः सनस्त्वक्प्रधानोधान्यविशेषः सर्षपा:-सिद्धार्थकाः मूलकः-शाकविशेषस्तस्य बीजानिमूलकबीजानि, ककारलोपसन्धिभ्यां मूलाबीयत्ति प्रतिपादितमिति, शेषाणां पर्याया लोकरूढितो ज्ञेया इति, यावद्हणाद् मंचाउत्ताणं मालाउत्ताणं ओलित्ताणं लित्ताणं लंछियाणं मुद्दियाणं ति द्रष्टव्यं व्याख्याऽस्य प्रागिवेति, पुनर्यावत्करणात् 'पविद्धंसइ विद्धंसइ से बीए अबीए भवइ, तेण परं'ति दृश्यम् ॥बादरआउकाइयाणं ति सूक्ष्माणांत्वन्तर्मुहूर्तमेवेति, एवमुत्तरत्रापि विशेषणफलं यथासम्भवं सप्तममध्ययन समस्थानम. सूत्रम् 572-583 अतसीकुसुम्भादियोनिकाल:, अप्कायतृतीय-चतुर्धनरकस्थितिः, शक्र-वरुणेशान-सोमयमाग्रम-हिष्यः, इशानाभ्यनतरपहिव-शकानमहिषी-सौधर्मपरिग्रहीत-देवीनां स्थितिः, सारस्वता दित्य-गर्दतोयतुषितदेवा, सनत्कुमार-माहेन्द्रब्रह्मलोकस्थितिः, ब्रह्मलोक-लान्तकविमानोचत्वम्, भवनपत्यादितनूश्चत्वम् नन्दीश्वरद्वीपान्तद्वीपसमुद्राः, ऋज्वायताधाः श्रेणयः असुरेन्द्राधनीकानि, चमरादिपदात्वनीकाधिपकक्षा-तद्देवसंख्या: // 720 //
SR No.600433
Book TitleSthanang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandrasguptasuri
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_sthanang
File Size33 MB
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